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भ्याता पुरपकी योग्यता समान आनन्ददाता और वायुकी तरह सगरहित इस तरहका बुद्धिमान ध्यानमें निपुण याता पुरुप हो उसीको ध्यान करनेकी योग्यता वाला समझना चाहिए। इस लिए याता पुरुपको अपनी योग्यताकी तरफ पूरा लक्ष देना चाहिए, क्योंकि योग्यता प्राप्त किए पिना प्रवेश किया जाय तो कार्यकी सिद्धि असम्भव है । यत:धान्तो दान्तो निगरम्भ उपशातो जितेन्द्रिय ॥ पताराधको झयो रिपरीतो विराधक {१२५॥
"श्रीपालचरित" पिण्डस्य ध्येय स्वम्प
पिण्डस्य च पदस्थ च रूपस्य उपजित || चतुर्धा ध्येयमाम्नान, ध्यानम्याररत युधे ॥
'योगशास्त्र" येयका परप बताते हुवे रयान किया है कि पिण्डस्य, पदस्थ, स्पस्य, और पातीव इन चार मकारके ध्येयको ध्यानके आरम्बन भूत मानना चाहिए । व्येय शुद्ध करने के पाद धारणाको मममना