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श्री नवकार महामंत्र कल्प
कर्णिकाको अमृतबिन्दु से विभूषित करे, उन कर्णिकाओंमेंसे चन्द्रविम्वसे गिरते हुवे मुखसे सञ्चारते हुवे प्रभामण्डलके मध्य में विराजित चन्द्र जैसी कान्ति वाले माया वीज " ही ” का चिन्तवन करे, चिन्तवन करनेके बाद पत्रोंमें भ्रमण करते आकाशतलसे सञ्चा रित मनकी मलीनताका नाश करते हुवे अमृतरससे झरते और तालुरन्ध्रसे निकलते हुवे भृकुटीके मध्य में शोभायमान तीन लोक में अचिन्त्य महात्म्य वाले
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तेजोमयकी तरह अद्भुत ऐसे इस हीकारका ध्यान किया जाय तो एकाग्रतासे लय लगानेवालेको वचन और मनका मेल दूर करने पर श्रुतज्ञानका प्रकाश होता है । इस प्रकार छे महिने तक अभ्यास करने वाला निजके मुखमेंसे निकलती हुई धूम्रकी शिखाको देखता है । इसी तरहसे एक वर्ष तक अभ्यास किया जाय तो सुखमें से निकलती हुई ज्वालाको देखता है, और ज्वाला देख लेनेके बाद संवेगवान होकर सर्वज्ञ सच्चिदान्द परमात्मा के मुखकमलको देखता है । इतना देख लेने के बाद सतत् अभ्यास करते करते अत्यन्त महात्म्यवाले कल्याणकारी अतिशय सहित