Book Title: Navkar Mahamantra Kalp
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 115
________________ (धर्म ध्यान प्रकरण १०७ ऐसे वचन जो गृहण करते हैं वह आज्ञारप ध्यानकी कोटिमें गिने जाते हैं। (२) अपाय विचय ध्यान, उसको कहते है कि ध्यानके प्रतापसे राग, द्वेष, कपायादिसे उत्पन्न होनेचाले दुखोंका चिन्तवन होकर दुर्गविसे भय प्राप्त होता हो तो ऐसे पुरप इस लोक परलोक सम्बन्धी पापोका त्याग करनेमें तत्पर होते हैं, और अनिष्ट कार्योसे नित्ति पाकर सन्मार्गमें चलते हैं जिससे कर्मवन्ध नही होता। (३) पिपाफ विचय ध्यान, से क्षण क्षणमें उत्पन्न होनेवाले कर्मफलके उदयका अनेक रुपसे विचार किया जाय, और कर्मसमूहसे अलग होनेकी भावना भायी जाय, और निश्चय पूर्वक यह मानता रहे कि अरिहन्त भगवानको जो सम्पदाएँ मम्माप्त है, और नर्कके जीवोंको जो विपदाएँ प्राप्त है। उसमें पुण्य और पापका ही साम्राज्य है। (४) सम्पान विषय भ्यानका यह साराश है कि जिसमें उत्पचि, स्थिति, और नाश स्वरपाले अनादि अनन्त लोककी आकृतिका चिन्तयन होता हो, और

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