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श्री नवकार महामंत्र - कल्प
जिसके पांच भेद बताए गए हैं। प्रथम पार्थिवी, दूसरी आग्नेयी, तीसरी मारुती, चोथी वारुणी, और पांचवीं तत्त्वभू, यह पांचों धारणाऐं पिण्डस्थ ध्यानमें होती है जिनका संक्षेप वर्णन इस प्रकार है ।
प्रथम पार्थिवी धारण उसे कहते हैं कि तिर्यक् लोक जितने क्षीरसमुद्रका चिन्तवन करे और उसमें जम्बूद्वीप जितना एक हजार पांखडीवाला सुवर्ण जैसी कान्तिवाले कमलका चिन्तवन करे, उस कमलकी केसरापंक्ति में प्रकाशमान प्रभावशाली मेरु जितनी पीले रंगकी कर्णिकाका चिन्तवन करे, उसके उपर श्वेत सिंहासन पर विराजमान निजकी आत्माका चिन्तवन करे, और कर्म निर्मूल करने के लिए प्रयत्नशील होकर कर्मक्षयका चितवन करे उसको पाथिवी धारणा कहते हैं ।
दूसरी आग्नेयी धारणाका स्वरूप इस तरह है कि नाभिके अन्दर सोलह पांखडीवाले कमल पुष्पकी योजना करे, और उस कमलकी कर्णिकाओंमें "अ " महामंत्रको और दुसरे प्रत्येक पत्रमें स्वरकी पंक्ति स्थापन करे, रेफ बिन्दुको कला सहित महामंत्र में जो