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ध्यान प्रकरण हो वह आगज न मुन सके इस तरहसे अन्तर जल्प रुप मुहमेंही कण्ठसे या जीभसे जाप करता रहे। इस तरहका जापभी उत्तम माना गया है, जो पुष्टिके हेतु जाप करते हो उनको उपाशु विधानका उपयोग करना चाहिए।
तीसरा भाप्य जाप उसे कहते है कि स्पष्ट उच्चारसे पाठ करनेकी तरह बोलते जाय, ऐसे उच्चाराले जाप आकर्पणादि कार्यमें उपयोगी होते है, अतः जैसी जिसकी भावना हो और कार्यका मसग हो तदनुसार लाभालाभ देख कर जाप करना चाहिए। इसी नापमें भ्रमर जापभी होता है जैसे दो अपरे गुजारव करते हों उस मकार कण्ठसे व नासिकासे मिलान करवा हुवा जाप करे जो ऐसा जाप जम जाय और इसके भेदको समझ ले वो उस पुरुपकी जशन पर सिद्धि हो जाती है। इसी तरहसे नित्य जाप, नैमित्तजाप, पर्वजाप, प्रदक्षिणानाप, काम्प जाप, प्रायथितजाप आदि बहुतसे मेद है यहा इसका विस्तार करना नही चाहते उपर बताया हुवादी समप्रमें आ जाय तो कल्याण हो सम्वा है।