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श्री नवकार महामंत्र - कल्प
मनोवृत्ति कितनी निर्मल होना चाहिए जिसकी कल्पना पाठक खुदही कर सकते हैं।
जाप करने वाला मौन रह कर जाप करे तो विशेष फलदाई होता है, जो मौनपने जाप करते हुवे थकित हो जाते हैं उनको चाहिए कि जाप बन्धकर ध्यान करने लगें इसी तरह ध्यानसे थक जाने पर जाप और दोनोंसे थक जाने पर स्तोत्र पढे, हस्त्र दीर्घका ध्यान रखते हुवे भावार्थ समझते जांय और जिस राग-रागिणी, छन्दादिमें स्तोत्र हों उसी रागमें मधुरी आवाज से पाठ करे तो फलदाई होता है । प्रतिष्ठा कल्पपद्धतिमें श्रीपादलिप्तसरि महाराजने लिखा है कि जाप तीन तरहके होते हैं, प्रथम मानसजाप दूसरा उपांशुजाप और तीसरा भाष्यजाप, जिसमें मानस जापका यह मतलब है कि मनहीमें स्थिरता पुर्वक स्थिरचित्त से लय लगाता हुवा ध्यान करता रहे, इस तरहके जापको उत्तम कोटिमें माना गया है, जो शान्ति तुष्टि पुष्टिके देने वाला है ।
दूसरा उपांशु जाप उसे कहते है कि पासमें बैठा