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होकारका ध्यान
८३ भामण्डलके मध्यमें विराजित साक्षात् सर्वज्ञ भगचानको देखता है, और उन सर्वज्ञके विपे मन स्थिर कर निश्चय युक्त लय लगाता रहे तो परिणामकी धारा ऐसी चढ जाती है कि उस मनुप्यके निकटवर्ती मोक्षके मुख उपस्थित हो जाते हैं, और वह परमपद प्राप्त करता है।
ही की महिमा अपरम्पार है, इसमें वर्णवार चोवीस जिनेश्वर भगवानकी स्थापना होती है, जो ध्यान करनेवाले के लिए आलम्बन रुप है, ही में अत्यन्त शक्तिका समावेश है, इसको मायावीज कहते हैं मायाका अर्थ लीला या फैलाव होता है, अतः माया बीज अर्थात् अक्षरोंका यह चीज है जिसको चीजरूप सिद्ध करने के लिए "" अक्षरको लिख कर इसके चित्र मुगफिक टुकडे नम्बर चार कैंचीसे काट कर रखना फिर उन पाचो डाहो से स्वर व्यञ्जन अक्षर बना सकते है, ही का जाप कितना लाभदाई है इसके लिए तो जो ज्ञानी गुरु महाराज इम विषयके अभ्यासी हो उनसे पूउना चाहिए यहा तो ममगानुसार किञ्चित स्वरूप बताया गया है।