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श्री नवकार महामंत्र - कल्प
शङ्खाव प्रकरण
दूसरी रीति शङ्खावर्त्तकी बताई गई है जो अपने दाहिने हाथकी उङ्गलीयों पर ही गिना जाता है इसकी शुरुआत मध्यमा उङ्गलीके मध्यका पेरवां फिर दूसरा अनामिकाका मध्य, तीसरा अनामिकाके नीचेका चोथा कनिष्टाके नीचेका पांचवां कनिष्ठाके मध्यका छट्टा कनिष्ठाके उपरका सातवां अनामिकाके उपरका आठवां मध्यमाके उपरका नौवां तर्जनी के उपरका दशवां तर्जनी के मध्यका ग्यारहवां तर्जनी के नीचेका और चारहवां मध्यमा के नीचेका इस तरह इन बारह को नौका गिनने से एक माला पूरी हो जाती है । इसीका नाम शङ्खावर्त्त है, और जो मनुष्य इस विधानसे जाप करते हैं उनको इस आवत्तके कारण ही भूत, पिशाच, व्यव्तर आदिसे भय प्राप्त नही होता और दुष्ट देव नही सताते और जाप भी शीघ्रता से 'फलता है, मनोकामना सिद्ध होती है शांति मिलती है, सुख पहुंचता है, और धैर्यता आती है इस लिए यह आवर्त्त भी ध्यान करने मोग्य है । जिसका चित्र पाठकोंके सामने है ।