Book Title: Navkar Mahamantra Kalp
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 55
________________ श्री नवकार महामन कल्प बैठते हैं, जिसमें मत्राक्षर आदि होते हैं और कई तरहकी स्थापनाओंसे मुशोभित होता है। ऐसे कचचको उपरोक्त मन द्वारा निर्मल बनाना चाहिए । ॥ हरत निर्मल मन ।। ___ॐ नमो अरिहन्ताण अन्देवि प्रशस्तहरते हूँ फट् स्वाहा ॥१॥ - इस मत्रका चोल कर निमके हाथोंको धूपके अथवा अगरबत्तीके वे पर रख कर शुद्ध करना चाहिए। ॥ फाय शुद्धि मन ॥ णमोमपापलयकरि ज्वालासह सम्वरित मापाप जहि जहि दह दह क्षा क्षी क्षौ क्षक्षीरधरले अमृतसम्भवे बधान यधान हूँ फट् स्वाहा ॥५॥ पापकों का नाश करने के लिए अन्तरायकर्मको मिटाने के रिए और शरीरको शुद्ध करने के हेतु अत.करणको शुद्ध करनेकी भावनाके लिए उपरोक मरका जाप करना चाहिए जिससे तत्काल सिद्धि होगी।

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