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श्री नत्रकार महामन फल्प श्रीनवकार मत्रकी फेरनेके बाद मत्रको लिखना, लिखे वाद पट्टकी पूजन-अर्चन मुगन्धी पदार्थ व पुष्पादिसे करके मत्र सिद्ध करना और भय उपस्थित हो तव अमुफ जाप किया जाय तो भय नष्ट हो जाता है।
॥ तम्बर स्यम्भन मंत्र ॥ ॐ नमो अरिहन्ताण, घणु धणु महाधर्म्यु महाधणु स्वाहा ॥४७॥ __ इस मनका ध्यान ललाटमें चित्तको स्थिर करके करनेसे महालाभ होता है, और इसीके प्रतापसे चोर स्तम्भन हो जाते हैं, और इसी मत्रको पटीक्रिया करते लिखता जाय और वाये हायसे लिखे हुवेको मिटाकर मुष्टि वध करता जाय इस तरहसे अमुक सरयामें लिखे वाद मुष्टि गध कर जाप करे-जाप पूर्ण होते ही मुष्टिको खोल कर दिशामें फैसने जैसा हाथ लम्बा करे तो चोरादि भय नही हो पाता और दृष्टिगत भी नही होंगे।
॥ गुभाशुम दर्शन मन ॥ ॐ ही अर्थ नमः क्ष्वी स्वाहा ॥४८॥