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मगुसाचार प्रकरण
(१) प्रथम च्याविद्धव दोप, अर्याद प्रमह समझे विन शेग्ना, वात घुउ और ही चल रही हो और आप आपनी यदानी और ही कहते जाते हो इस तरहकी आदत मिनरी हो उन्हे छोडनेका प्रयत्न करना चाहिए।
(२) मा व्यन्यानंदित्व दोप, इसका यह मतप कि एक आदमी गात कर रहा हो और मीपमे आप अपनी जमाते जाते हों,याने एक साय
पर आगो भागय जो बोलते है उनमें से परमी भी गात ममसमें नहीं आती और परिश्रम यही पग मावा और मुनने वाला भी घृणा पता है भतः पेसी आदत निन पुरपाकी हो उन्हें चाटिगि पर देखें।
(3) तीसरा पीनासर दोप, पदमें, शन्दमें कम मसर पोपना निगम यम लिपना निमसे र्यका मन ही माता रे, मवन्य चटा नावाई और गुननेवागममा नारी माता निन महानुभावोंको पाट वचारी में बोल्नेग पाम परता हो यह इम भरी नन्दी वीरार परेंगे और निनी आदत