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अशुद्धोचार प्रकरण
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नही हो सकती । लेकिन आजके वरतमे अपनी अयोग्यताको तो देखते नही और मत्रकी व मनके अधिष्ठाता देवकी शक्तिको हीन मानते हैं । पुरषार्थ अपना नही ब्रह्मचर्यादि गण नही धैर्यता व सतोप नही तप जप चारित्रकी शुद्धि नही और रहेंगे मंत्रोका अश जाता रहा ।
महानिशीथ सूत्रमें तो स्पष्ट वयान किया है कि श्रावक श्राविका उपधान के किए बिना नवकारमत्रका उच्चार करे तो निषेध है। विषय बहुत लम्बा है, यहा इस चर्चा को बढाना असंगत है, लेकिन वर्तमान में इस निर्देश मर्यादाका कितना उलन रो रहा है सो सब जानते हैं। जनके नवकार भनका उच्चार करनेका अधिकार भी हमने आज्ञाके पाफिक प्राप्त नही किया है तो मत्र साधन मनोवारसी तो बात ही वडी है, समझ सकते है कि खुद अधिकारी ने नही और रहेंगे देवो अश जाता रहा।
शास्त्रोंमें बताये अनुसार अधिकार प्राप्त करने के बाद भी हर एक धर्मक्रिया करते समय पाच मणिधानका ध्यान रखना चाहिए, जिसका विवेचन