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श्री नवकार महामंत्र-कल्प सिद्धाः सिद्धयन्ति सेत्स्यन्ति ये जीवा भुवनत्रये ॥ सर्वेऽपि ते नंवपदाराधनेनैव निश्चितम् ॥१२०॥
श्रीपाल चरित्र भावार्थ-श्रीपालजी महाराजके चरित्रमें तो यहां तक वयान किया है कि जो सिद्धावस्था तक पहुंच चुके हैं और जो जीव अब सिद्ध होंगे उन सबके लिये किसी न किसी रूपमें नवपद आराधन मुख्य समझना चाहिए।
आवश्यक सूत्रकी नियुक्तिमें नवकार स्मरण करनेकी परिपाटी यूं बताई गई है।
अरिहताणं नमोकारोः सवपावप्पणासणो ॥ मंगलाणं च सव्वेसि, पढमं हवइ मंगलं ॥१॥ सिद्धाणं नमोकारो. सव्वपावप्पणासणो ॥ मंगलाणं च सव्वेसि, वीयं हवइ मंगलं ॥२॥ आयरियाणं नमोकारो, सवपाचप्पणासणो ॥ मंगलाणं च सब्वेसि, तइयं हवइ मंगलं ॥३॥ उवज्झायाणं नमोकारो, सव्वपायप्पणासणो ॥ मंगलाणं च सव्वेसिं, चोत्थ हवइ मंगलं ॥४॥ साहणं नमोकारो, सव्वपावप्पणासणो ॥ मगलाणं च सवेसिं, पञ्चमं हवइ मंगलं ॥५॥ एसो पंच नमोकारो, सव्वपावप्पणासणो ॥ मंगलाणं च सम्बेसि, पढम हवह मंगलं ॥६॥