Book Title: Nandisutram
Author(s): Devvachak, Punyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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हारिभद्रीवृत्ति के संशोधनमें इसकी प्रतियोंके अतिरिक्त इसकी श्रीचन्द्रीयदुर्गपदव्याख्याको भी लक्ष्यमें रक्खी है, इतना ही नहीं किन्तु आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिजीने अपनी वृत्तिमें जो जो उद्धरण दिये हैं, उन सबको, हो सका वहाँ तक, मूल स्थानों के साथ तुलना कर, प्राचीन कालसे चली आती अशुद्धियों का परिमार्जन करनेका प्रयत्न किया है । दुर्गपदव्याख्याका परि मार्जन प्रतियोंके अलावा विशेषावश्यककी मलधारी वृत्तिके आधारसे किया गया है। आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिने विशेषावश्यकमहाभाष्य आदिके जो उद्धरण दिये हैं, उनके पाठोंकी ओर दुर्गपदव्याख्याकारने कोई खास ध्यान दिया प्रतीत नहीं होता है । यही कारण है कि आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिके उद्धरण और दुर्गपदव्याख्याकारने दी हुई गाथाओं में पाठभेद पाये जाते हैं । दुर्गपदव्याख्याकारने हारिभद्रीवृत्ति में उद्धृत विशेषावश्यकमहाभाष्य की गाथाओंके उपर कोई स्वतंत्र व्याख्या नहीं की है, किन्तु उन गाथाओंकी मलधारी आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरिने जो व्याख्या की है उसीका अक्षरशः ऊतारा ही कर लिया है । अतः ऐसे पाठोंको तत्तत् स्थानके पाठोंके साथ मिलाया गया है ।
नन्दिमूलसूत्र के उपर आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिने जिस पाठको लक्ष्यमें रख कर ब्याख्या की है, वही सूत्रपाठ मैंने वृत्ति आधारसे मूलमें दिया है। ऐसे स्थानोंमें आचार्य श्रीहरिभद्रको इष्ट सूत्रपाठ प्रतियोंमें कहीं पाया गया है और कहीं नहीं भी पाया गया है। फिर भी आचार्यकी व्याख्याकी संगतिको लक्ष्यमें रख कर यह परिवर्तन मैंने उचित माना है । आज अपने सामने नन्दिसूत्रकी जो प्राचीन अर्वाचीन प्रतियाँ विद्यमान हैं, उनमेंसे एक भी प्रति ऐसी नहीं है जो श्रीचूर्णि कार, श्रीहरिभद्रसूरि या श्रीमलयगिरिकी व्याख्या के साथ पूर्णतया सहमत हो । इस दशामें तत्तद् वृत्तिके साथ तत्तत् सूत्रपाठोंका स्थापन या परावर्तन करना असंगत नहीं है। फिर भी मैंने नन्दीसुत्रकी प्रतियोंमें पाये गये महत्त्व के कोई भी पाठभेद की उपेक्षा नहीं की है, इतना ही नहीं ग्रन्थान्तरोंमें नन्दीसूत्रके उद्धृत उद्धरणोंसे उपलब्ध पाठभेद भी मैंने दिये हैं । साथ में चूर्णिकार, हरिभद्रसूरि और श्रीमलयगिरि, ये तीन व्याख्याकार महर्षियोंमेंसे, किसको कौनसा या कैसा सूत्रपाठ अभिमत हैं ? - इसका भी सर्वत्र विवेक किया गया है । इन पाठभेदोंके जिज्ञासुओंसे विज्ञप्ति है कि इस संस्था की ओरसे प्रकाशित चूर्णिसहित नन्दीसूत्रकी पादटिप्पणीओं को ध्यानसे देखें ।
परिशिष्ट
इस ग्रन्थके साथ पांच परिशिष्ट एवं शुद्धिपत्र दिये गये | प्रथम परिशिष्ट में मूलनन्दीसूत्रकी गाथाओंका क्रम दिया है । दूसरे परिशिष्ट में नन्दीहारिभद्रीवृत्ति, दुर्गपदव्याख्या और अनुज्ञानन्दी या लघुनन्दीकी वृत्तिमें दिये उद्धरणोंका क्रम दिया है । तीसरे परिशिष्ट में नन्दीसूत्रमूल, हारिभद्रीवृत्ति, दुर्गपदव्याख्या, विषमपद टिप्पनक, अनुज्ञानन्दी और योगनन्दीमें स्थित विशेषनामोंका क्रम दिया है। चतुर्थ परिशिष्ट में नन्दीहारिभद्रीवृत्तिगत पाठान्तर - मतान्तर व्याख्यान्तरोंके स्थान दिये हैं । पांचवें परिशिष्ट में नन्दीसूत्र और व्याख्याओंमें स्थित व्याख्यात, अव्याख्यात एवं विषयद्योतक शब्दोंका अनुक्रम दिया है । और अन्तमें मुनिवर श्रीजम्बूविजयजी, भाई श्रीदलसुखभाई मालवणिया और पंडित श्रीबेचरदास दोसीने तैयार किया शुद्धिपत्रक है । विद्वानोंसे प्रार्थना है कि इस ग्रन्थके पढने के पूर्व शुद्धिपत्रकका उपयोग करें ।
उपसंहार
प्रस्ताबनाके प्रारम्भमें उल्लिखित प्रतियोंके आधारसे प्रस्तुत ग्रन्थका संशोधन किया गया है। इस मुद्रणके प्रुफपत्रोंका निरीक्षण एवं परिशिष्ट भी पं. भाई अमृतलाल मोहनलाल भोजक ने किया है । भाई श्रीदलसुखभाई मालवणियाजीका साहाय्य भी आदि अन्त तक रहा है। इतना होते हुए भी अगर इस संशोधनमें कोई क्षति प्रतीत हो तो विद्वानोंसे प्रार्थना है कि ऐसी क्षतियोंकी सूचना देनेकी कृपा करें। जिनका उपयोग यथावसर अवश्य ही किया जायगा ।
सं. २०२२ माघ शुक्ल पूर्णिमा
मुनि पुण्यविजय
अहमदाबाद
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