Book Title: Nandanvan Kalpataru 2016 11 SrNo 37
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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श्रीमद्भगवज्जिनवन्दनम्
वन्दे जिनं जगति जैनसमाजपूज्यम्, पञ्चमत्र च मुनिं त्रिशला - तनूजम् । यं जैनधर्मजनकं मनसा स्मरामि, तस्मै नमो भगवते महते जिनाय ॥ १ ॥
श्वेताम्बरः प्रथम आदिगृहस्थभोगी, पश्चादयं स्वतपसाऽत्र दिगम्बरोऽभूत् । यं जैनदेवमधुना हृदये भजामि, तं वर्धमानमथ साधुवरं नमामि ॥२॥
ज्ञानप्रदश्च जनताशुभचिन्तको यः, स्वामी स कुण्डलन्यवसच्च वीरः । जैनप्रवर्तकमुनिं यमहं हि वन्दे, तस्मै नमो भगवते महते जिनाय || ३ ||
योऽभूद्धि नेत्रयुगसायक(५४२) वर्षपूर्वम्, शुक्लत्रयोदशमधाविह वैक्रमाऽब्दात् । आध्यात्म्यसाधुमथ देशजसाधुवर्गे, जैनं नमामि तमहं मुनिमत्र सर्गे ||४||
भाषोपदेशकवराय समत्वदाय, साधारणादिजनशर्मसमीक्षकाय, विप्रादिशूद्रजनतासमताप्रदाय, तस्मै नमो भगवते महते जिनाय ॥५॥
३
- डॉ. रामकिशोर मिश्रः

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