Book Title: Nandanvan Kalpataru 2016 11 SrNo 37
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 47
________________ कृपया परमेशस्य श्रमेण चाऽऽत्मनस्तथा । प्राप्नोति सततं सुखं मानवो नाऽत्र संशयः ॥१०॥ तस्मान्नरः सुविचार्य कृत्वा परिश्रमं तथा । साफल्यं लभते नित्यं विफलतां न सर्वथा ॥११॥ समुदेति परिश्रमो न कदा विरमत्यसौ । गगने हि यथा सूर्यः प्राणा वा प्राणिजीवने ॥१२।। संस्कृतविभाग, भाषासाहित्यभवनम्, गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद-९ (गुजरात)

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