Book Title: Nandanvan Kalpataru 2016 11 SrNo 37
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 15
________________ सागरतीरे विचरन्, सम्यगुपदिश्य धीवरादिजनान् । विरमय्य हि हिंसातो, वरमकृत जीवदयाकृत्यम् ॥१०॥ मुनिसंमेलनसमये, बुद्धिप्रागल्भ्यमस्य सन्दृश्य । सर्वेऽपि तत्रत्यजनाः, भृशमेव चमत्कृता जजुः ॥११॥ यद्बह्मचर्यचर्यां, दुरनुष्ठेयां विलोक्य सहसैव ।। वदनादद्भुतमद्भुत-मिति शब्दः सरति सर्वेषाम् ॥१२।। भावनगरभूपालो, वलभीपुरभूपतिप्रमुख्याश्च । यद्वचसा प्रतिबुद्धा-श्चक्रुहिंसादिपरिहारम् ॥१३॥ आनन्द-मालवीया-कविनानालालमुख्यबुधवाः । येन सह तत्त्वचर्चा कृत्वा प्रीतिं परां प्रापुः ॥१४॥ तत्कार्यविधात्री-संस्थाकार्याधिकारिणः श्राद्धाः । यन्मार्गदर्शनेना-ऽकुर्वन् सर्वाणि कार्याणि ॥१५।। एकस्मिन्नपि जन्मनि, पूज्यैर्विहितानि यानि कार्याणि । . बहुमनुजैर्बहुजन्मसु, कर्तुं न हि तानि शक्यानि ॥१६॥ पूज्यश्रीनेमिगुरु-र्भक्त्यैवं संस्तुतो मया परया । श्रीदेवसूरिगुरुराट्-शिष्य श्रीहेमचन्द्रेण ॥१७॥

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