Book Title: Nandanvan Kalpataru 2016 11 SrNo 37
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 23
________________ (१९) कृतज्ञता यासां सत्तपसा भुवि स्थिरपदो धर्मः सनत्नो महान् यासां सन्महसा विभान्ति रविशश्यादिग्रहाः क्षितौ । यासां योगनिधियुनक्ति भुवनं सत्कर्ममार्गेऽनिशम् सत्यस्ता भुवि बोधदर्शनचरित्रैकोज्ज्वला जज्ज्वलुः ॥ (२०) नमस्ताभ्यः ! कालो ह्ययं निरवधिः पृथिवी प्रथिम्ना प्रायोऽवगाहकठिनाऽहह चैतदायुः । अत्यल्पमत्र गणना कथमस्तु तासां सच्चित्सुखात्मवपुषां परमाम्बिकानाम् ॥ (२१) पुष्पिकेयं नभःसिततृतीयायां शशिदिने नेत्रर्षिनभोनेत्रमे(२०७२) । वैक्रमेऽवकाशे किल कृतं कुरुषु कवयो विदन्तु ॥ श्रीनन्दनवनकल्पतरुच्छायामिच्छन्ती पद्यप्रसूनाञ्जलिः । नमांसि सन्मुनिषु नः सफलानि सन्तु ब्राह्मी विभातु सकलश्रियमाहरन्ती । तृप्यन्तु सर्वमनुजा भरतार्यभूमौ भूयान्नु नन्दनवनं सुसुखं समेषाम् ॥ ॐ संस्कृतपालिप्राकृतविभागः कुरुक्षेत्रविश्वविद्यालयः कुरुक्षेत्रम्

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