Book Title: Nandanvan Kalpataru 2003 00 SrNo 10
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 42
________________ भवसागरतोऽविरलं गरलं, रलरोलविलोलकर समितम् । मितया समतामृतसत्कलया, लयमेति परं क्षणवीक्षणया नयसन्नयवर्मितधर्मबला, बलनिर्जितदुष्टविकल्पदला। दललक्षसरोरुहहृत्सुषमा, समता समसौख्यकरी जयति ॥६॥ । यतिमानसवासनिवासकरी, ___ करिणीमिव सत् क्रममञ्जुचराम् चरणाचरणस्य फलैः सफलां, फलदां समतां किलतां श्रयताम् ॥७॥ यततां समतानुगमाय जनो, जननान्मरणाद् यदि भीतमनाः । मनसो विमलीकरणाय सदा, सदनुष्ठितिपूर्णकराय तदा ૮ી Jain Education International 33 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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