Book Title: Nandanvan Kalpataru 2003 00 SrNo 10
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
Jain Education International
दशमोऽधिकारः
सदनुष्ठानम् [पञ्चाचामरवृत्तम्]
अनाद्यनन्तजन्मनः परम्परामनुत्तरां,
भवानुभावतः समन्ततोऽनुभूय चेतनः । न शर्म लेशमत्र विन्दते स्वकर्मणो वशः,
कथञ्चनाप्यवाप्य जन्म मानवं न्ववैति यत्
बलं कुकर्मणो विलीनतामुपागते सति,
श्रुतिं प्रयाति धर्मरूपमक्षरद्वयं ततः । विधातुमुल सेन्मनस्तदीयमुच्चकर्म सत्
परं दुरन्तमोहनीयकर्मणैति दुष्पथम्
अनुष्ठितिं प्रतिष्ठितामुपाचरन् चिरं गुणी, -
भवन् विलोक्य लोकमात्मनोऽमुखं सुखभ्रमम् । अतीवगाढमोहगृद्धिमाप्य बाढमीहते,
स्वभावनाशनं भवं विषामनुष्ठितिं दधत् ગો
बहिः सुखप्रसक्तमानसोऽभिलाषदोषतो,
गरं स्वधर्मवर्तनं विधाय नालमात्मने ।
अतो निदानवर्जनं जिनेश्वरैः प्ररूपितं, निदानमात्मरोगसन्निधानदानमीरितम्
કો
34
For Private & Personal Use Only
રા
રોકા
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140