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"काव्यानुवादः
मुनिरत्नकीर्तिविजयः
(१)
मैं आप अपनी तलाशमें हुं, मेरा कोई रहेनुमा नहीं; वो क्या बताएंगे यह राह मुझको, जिन्हें खुद अपना पता नहीं ?
(अज्ञातः)
अहं स्वयं स्वं परिशोधयामि, नास्तीह कश्चित् पथदर्शको मे । स दर्शयेत् मे कथमेव मार्ग ज्ञातं न येन 'स्वयमेव कोऽहम्' ?
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