Book Title: Namotthunam Ek Divya Sadhna
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Choradiya Charitable Trust

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Page 9
________________ प्रकाशकीय आज आपके सामने नमोत्थुणं सूत्र स्वाध्याय के रुपमें प्रकाशन करते समय अत्यंत हर्ष हो रहा हैं। मैं इस भ्रम में था कि अरिहंतप्रिया साध्वी डॉ.दिव्यप्रभाजी की नमोत्थुणं की दिव्यसाधना समाज के सामने उनके संयम के पचासवें वर्ष में भेंट चढाऊँगा। अचानक भ्रम टूटा, भ्रांति हटी पता चला संयम के पचास वर्ष की पूर्णाहूति में साध्वी जी नमोत्थुणं के साथ स्वयं को प्रभु चरणों में भेंट चढा रही हैं। मैं क्या भेंट चढाऊँ ? उनको शासन देव की साक्षी से समस्त समाज के साथ नमस्कार का अर्ध्य अंजलिकर मैं ने स्वयं को समाधित किया। एक प्रतिष्ठित और आध्यात्मिक परिवार में जन्म लेकर आपने जिनशासन में अद्भुत प्रभावना अर्पित की। मोत्थु सूत्र सामायिक का सातवा पाठ एवं विधि का संधि संयोग मात्र जिसे माना जाता था वह परमात्मा से मिलन की मंत्रणा की और मोक्ष की मंगल आरती हैं, ऐसा कभी सोचा ही नहीं था। साध्वी श्री ने इसे साधना के साथ प्रस्तुत कर समाज का गौरव बढाया। शासन का वैभव प्रस्तुत किया। प्रत्येक पद की एक एक व्याख्या प्रस्तुत कर आपने इसके भीतर के सारे राज खोल दिये । की यह यात्रा बहुत लंबी चली । प्रकाशन में विलंब हो गया। संपूर्ण समाज का मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। इसके लिए मैं स्वयं भी वर्षों से प्रतीक्षारत रहा हूं । नमोत्थुणं की यह यात्रा बहुत कसोटी पूर्ण रही। साध्वी श्री का स्वास्थ्य काफी उपर नीचे होता रहा फिर भी परमतत्त्व का शक्तियोग इनका स्वयं का भक्तियोग एवं सहयोगिनी साध्वीयों के सहयोग के कारण हम आज आप तक पहुंच रहे हैं। इन प्रवचनों को कैसेट में टेप कर उसको लिखकर प्रतिलिपी तैयार करने में घाटकोपर के ईश्वरभाई झाटकिया और वापी के ज्योत्सनाबेन का मैं खूब खूब आभारी हूँ । २००२ के देवलाली के ये प्रवचन गुजराती में होने से हिंदी प्रकाशन में समस्या आ रही थी। इसी दरम्यान २००४ में साध्वी श्री को मुंबई खार श्री संघ की बिनती आयी। इस चार्तुमास में श्री संघ ने रविवार को लोगस्सपर और प्रतिदिन नमोत्थुणं पर प्रवचन करने की बिनंती की। शासन प्रभावना की यह एक अद्भुत बेला समझकर साध्वीश्री ने यहाँपर नमोत्थुणं पर हिंदी में प्रवचन किये। हिंदी और गुजराती के इस प्रारूप को अच्छी प्रतिलिपी में प्रकट करने में सहयोग देनेवाले आशाबेन किशोरभाई दोमडिया के आभारी हैं। सबसे बड़ा उपकार हमपर वात्सल्यप्रिया साध्वी दर्शनप्रभाजी का रहा। प्रेरणास्तंभ बनकर समय समयपर हिम्मत, अवसर और सहयोग प्रदानकर इस कार्य को पूर्णाहूति तक ले जाने का प्रयास किया। आबु माउंट से . साध्वी डॉ. मुक्तिप्रभाजी के भी आशीर्वाद और प्रेरणा हमारे लिए बहुत उपयोगी रहे हैं। मॅटर को व्यवस्थित रूप देकर आग्रा तक पहुंचाने के लिए हम अतुलभाई दवे के भी ऋणी हैं। रत्नप्रकाशन मंदिर वालों का भी हम आभार मानते हैं जिन्होंने यथा समय प्रकाशन कर हमारे उपर महेरबानी की हैं। प्रकाशक श्री उमरावमलजी चोरडिया चोरडिया चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर (राजस्थान)

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