Book Title: Namotthunam Ek Divya Sadhna
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Choradiya Charitable Trust

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Page 8
________________ की यह व्याख्या उस दिन बदल गई। देह का विहार विदेह का विहार हो गया। चलती थी देह से अनुभूति करती थी विदेह की और दर्शन करती थी महाविदेह के। शाम ४:०० बजते थे अनुभव होता था प्रात:काल हो गया। अचानक कान में मालकोष राग में नमोत्थुणं उद्दघोष चालु हो जाता था। कौन गाता है? अभी क्यों? इसका कोई उत्तर नहीं मिलता था। विहार करते करते यात्रा इडर तक पहुंची १० अप्रैल २००२ का समय अचानक जयंतीभाई पटेल आदि जन्म दिन अभिनंदन करने आये थे। उनको मिलने से पूर्व इडर के श्रीमद् के चरणों में आत्मसिद्धि का पारायण कर रही थी। अचानक झपकी आयी और वहीं नमोत्थुणं की स्वर लहरी गुंजने लगी। एक सुंदर सा समाधान सामने से प्रगट हुआ। भरतक्षेत्र का दिन महाविदेहक्षेत्र की रात होती हैं। महाविदेहक्षेत्र का दिन भरतक्षेत्र की रात होती हैं। समय की रफ्तार वहीं रहती हैं। महाविदेहक्षेत्र में नमोत्थुणं का लाइव प्रोग्राम देशना से पूर्व प्रतिदिन होता हैं। प्रात:काल के देशना का प्रारंभ गणधर भगवंत के नमोत्थुणं से होता हैं। देशना के पश्चात शकेंद्र महाराज का नमोत्थुणं शक्रस्तव के रूप में सुनाया जाता हैं। इसीतरह संध्याकाल में देशना के प्रारंभ में शक्रंद्र महाराज की स्तवना और पूर्णाहूति में गणधर भगवंत द्वारा नमोत्थुणं की स्तवना प्रकट होती हैं। मार्ग वहीं था पर विहार की व्याख्या बदल गई। देह का विहार विदेह का विहार हो गया। अंर्तचक्षु से स्वयं को देखना, भाव विहार हैं। तब से मैं महाविदेह में उपस्थिति का अनुभव करते हुए नमोत्थुणं गुनगुनाती रही। दो हजार दो में साधना के साथ नमोत्थुणं को ही व्याख्यान का विषय बना दिया गया। जो आज ग्रंथ के रूप में आपका स्वाध्याय का विषय बन गया। अरिहंतप्रिया साध्वी दिव्या २७ मार्च २०१६ रविवार देवलाली

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