Book Title: Muktidoot
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 8
________________ कोमल सुनहली लिपि में कोई आशा का सन्देश लिख रहा है ।" 3. "प्राण की अनिवार पीड़ा से वक्ष अपनी सम्पूर्ण मांसल, मृदुता और माधुर्य में टूट रहा है, टूक-टूक हुआ जा रहा है।" 4. " सूं... लूँ...करली तलवार की विकलता पृथ्वी की ठण्डी और निविड़ गन्ध में उत्तेजित होती गयी...शून्य में कहीं भी घाव नहीं हो सका है--मात्र यह निर्जीय खम्भे के पत्थरों का अवरोध टकरा जाता है... उन्न... उन्न!" लेखक की चित्रण -कुशलता इन उदाहरणों में देखिए जहाँ एक ही किया- 'अवलोकन' की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं की भिन्न शब्दों में व्यक्त किया है। और हर चित्रण अपनी जगह सार्थक और हैसुन्दर — 1. परिचयहीन भटकी चितवन से वह वसन्त को देख उठी। 2. दोनों ने एक-दूसरे को देखकर एक वेदना भरी मुसकराहट बदली। 3. अश्रु- निविड़ आँखों से, एक विवश पशु की तरह, पुतलियों में तीव्र जिज्ञासा सुलगाये, बसन्त उस अंजना की ओर ताक रही है। 4. एक साधभरी वेदना की उत्सुक और विधुर दृष्टि से पवनंजय उस ओर देखते रह गये ! नीचे लिखे चित्रों का चमत्कार देखिए। एक-एक वाक्य में कल्पना का और भावों का सागर उड़ेल दिया है 1. समर्पण की दोपशिखा - सी वह अपने आप में ही प्रज्वलित और तल्लीन ▸ थी । 2. चम्पक- गौर भुजदण्डों पर कमल-सी हथेलियों में कर्पूर की आरतियाँ झूल रही हैं। 9. कपोल - पाली में फैली हुई स्मित- रेखा, उन आँखों के गहन कजरारे तटों में जाने कितने रहस्यों से भरकर लीन हो गयी। 4. अंजना की समस्त देह पिघलकर मानो उत्सर्ग के पद्म पर एक अदृश्य जल - कणिका मात्र बनी रह जाना चाहती है। 5. भाले के फलक-सा एक तीक्ष्ण प्रश्न कुमार की छाती में चमक उठा। 'मुक्तिदूत' के कथानक का विस्तार, मानो अनन्त आकाश में है, इससे पात्रों को अधिक-से-अधिक फैलने का अवसर मिला है । मानुषोत्तर पर्वत, लवण समुद्र, अनन्त द्वीपसमूह, विजयार्ध की गिरिमाला आदि के काल्पनिक सौन्दर्य से कथा में भव्यता आ गयी हैं । पुस्तक की भाषा इसी भूमिका और वातावरण के अनुरूप सहज संस्कृत प्रधान है। पर, लिखते समय मन प्राण और इन्द्रियों की एकाग्रता से भाव - गुम्फन के लिए रूप, रस, वर्ण, गन्ध और ध्वनि के व्यंजक जो शब्द अनायास लेखनी पर आ जाते हैं उनके विषय में हिन्दी-संस्कृत का भेद किया नहीं जा सकता । प्रत्येक शब्द की एक विशेष अनुभूति, चित्र, वर्ण और व्यंजना लेखक के - :: 15 ::

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