Book Title: Mukhvastrika Siddhi Author(s): Ratanlal Doshi Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 7
________________ [6] 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 इसके पश्चात् अमुक-अमुक समय पर (स्वाध्याय, प्रतिलेखन, प्रमार्जन, वाचना, पृच्छा, परावर्तना, व्याख्यान, पठन-पाठन आदि) बांधना स्वीकार कर कुछ समय के लिए हाथ में रखना शुरू किया। फिर ज्यों ज्यों शिथिलता बढ़ती गई त्यों-त्यों मुखवस्त्रिका का स्थान मुंह से हटने लगा। चलते-चलते स्थिति यहाँ तक पहुंची कि मूर्तिपूजक समाज के साधु वर्ग में विक्रमीय बीसवीं सदी के प्रारंभ में व्याख्यान प्रसंग पर ही मुखवस्त्रिका मुंह पर रखकर बाकी सब समय के लिए वह नीचे उतर गई। अब तो इस समाज का वर्ग विशेष मुखवस्त्रिका को मुख पर बांधना ही पाप समझने लगा है। इतना ही नहीं यह वर्ग मुखवस्त्रिका बांधने वालों की घोर निंदा भी करने लग गया हैं। ऐसे विषम समय में मुखवस्त्रिका मुख पर बांधना आगम प्रमाणित करना, अति आवश्यक है। इस संदर्भ में आदरणीय रतनलाल जी सा. डोशी, सैलाना (म. प्र.) निवासी द्वारा लिखित "मुखवस्त्रिका सिद्धि" अत्यन्त उपयोगी है। इसमें आप श्री ने विक्रम संवत् १९६१ में नाभाशहर (पंजाब) की राज्य सभा में स्थानकवासी सम्प्रदाय के गणिवर्य श्री उदयचन्दजी म. सा. का श्री वल्लभविजय जी (मूर्तिपूजक) साधु के साथ मुखवस्त्रिका पर हुए शास्त्रार्थ एवं उसमें गणिवर पूज्य श्री उदयचन्दजी म. सा. की जीत का उल्लेख किया। साथ ही स्थानकवासी सम्प्रदाय से निष्कासित श्री ज्ञान सुन्दर जी जो बाद में मूर्तिपूजक समाज में साधु बने उनके द्वारा मुखवस्त्रिका बाबत उठाये गए मुद्दों का आगम सम्मत समाधान, प्राचीन मूर्तिपूजक संत एवं आचार्यों के द्वारा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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