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मेरी जीवनगाथा
पैसा भी पास न था, फिर भी अपनी दरिद्र अवस्था वचनों द्वारा सेठके सामने व्यक्त न होने दी-मनमें याचनाका भाव नहीं आया।
सेठजीको मेरे ऊपर अन्तरंगसे प्रेम हो गया। प्रेमके साथ ही मेरे प्रति दयाकी भावना भी हो गई। बोले 'तुम आग्रह मत करो, हमारे साथ बम्बई चलो, हम आपके हितैषी हैं। उनके आग्रह करने पर मैंने भी उन्हींके साथ बम्बईके लिए प्रस्थान कर दिया । नासिक होता हुआ रात्रिके नौ बजे बम्बईकी स्टेशनपर पहुँचा । रोशनी आदिकी प्रचुरता देखकर आश्चर्यमें पड़ गया। यह चिन्ता हुई कि पासमें तो पैसा नहीं, क्या करूँगा? नाना विकल्पोंके जालमें पड़ गया, कुछ भी निश्चित न कर सका। सेठजीके साथ घोड़ा-गाड़ीमें बैठकर जहाँ सेठ साहब ठहरे उसी मकानमें ठहर गया । मकान क्या था, स्वर्गका एक खण्ड था। देखकर आनन्दके बदले खेद-सागरमें डूब गया। क्या करूँ ? कुछ भी निश्चय न कर सका। रात्रि भर नींद नहीं आई। प्रातः शौचादि क्रियासे निवृत्त होकर बैठा था कि सेठजीने कहा-'चलो मन्दिर चलें और आपका जो भी सामान हो वह भी लेते चलें। वहीं मन्दिरके नीचे धर्मशाला में ठहर जाना। मैंने कहा-'अच्छा।'
सामान लेकर मन्दिर गया, नीचे धर्मशालामें सामान रखकर ऊपर दर्शन करने लगा। लज्जाके साथ दर्शन किये, क्योंकि शरीर क्षीण था। वस्त्र मलिन थे। चेहरा बीमारीके कारण विकृत था । शीघ्र दर्शनकर एक पुस्तक उठा ली और धर्मशालामें स्वाध्याय करने लगा। सेठजी आठ आने देकर चले गये।
मैं किंकर्तव्यविमूढ़की तरह स्वाध्याय करने लगा। इतनेमें ही एक बाबा गुरुदयालसिंह, जो खुरजाके रहनेवाले थे, मेरे पास आये और पूछने लगे-'कहाँसे आये हो और बम्बई आकर क्या करोंगे ?' मुझसे कुछ नहीं कहा गया, प्रत्युत गद्गद हो गया। श्रीयुत बाबा गुरुदयालसिंहजीने कहा-'हम आध घंटा बाद आवेंगे तुम यहीं मिलना ।' मैं शान्तिपूर्वक स्वाध्याय करने लगा।
उनकी अमृतमयी वाणीसे इतनी तृप्ति हुई कि सब दुःख भूल गया। आध घंटाके बाद बाबाजी आ गये और दो धोती, दो जोड़े दुपट्टे, रसोईके सब बर्तन, आठ दिनका भोजनका सामान, सिगड़ी, कोयला तथा दस रुपया नकद देकर बोले-'आनन्दसे भोजन बनाओ, कोई चिन्ता न करना, हम तुम्हारी सब तरहसे रक्षा करेंगे। अशुभकर्मके विपाकमें मनुष्योंको अनेक विपत्तियोंका सामना करना पड़ता है और जब शुभ कर्मका विपाक आता है तब अनायास जीवोंको सुख-सामग्रीका लाभ हो जाता है। कोई न कर्ता है न हर्ता है, देखो, हम
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