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मेरी जीवनगाथा
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बाद एक छात्रावास है। बगलमें (रसोईघर) है। यहाँ से थोड़ी दूर चलकर रानीघाटपर श्री स्वर्गीय छेदीलालजीके द्वारा निर्मापित सुन्दर मन्दिर है, जो लाखों रुपये की लागत का है। मन्दिर के नीचे एक धर्मशाला भी है, जिसमें स्याद्वाद विद्यालय के छात्रगण रहते हैं। मैं भी इसी धर्मशालामें रहकर अध्ययन करता था। यहाँसे तीन मील चलकर शहर के भीतर मैदागिनमें एक बहुत ही सुन्दर जिन मन्दिर है। एक धर्मशाला भी है, जिसमें यात्रीगण ठहरते हैं। यहाँपर सब प्रकार की सुविधा है। यहाँ से थोड़े ही अन्तरपर एक पंचायती मन्दिर है, जिसमें बहुत जिनबिम्ब हैं। एक चैत्यालय श्रीखड्गसेन उदयराजका भी है।
बनारसमें तीन दिन रहा। इन्हीं दिनोंमें स्याद्वाद विद्यालय भी गया। वहाँ पठन-पाठनका बहुत ही उत्तम प्रबन्ध है। यहाँ के छात्र व्युत्पन्न ही निकलते हैं। विनयके भण्डार हैं। श्रीमान् पण्डित कैलाशचन्द्रजी, जो कि यहाँके मुख्याध्यापक हैं, बहुत सुयोग्य हैं। आप सहृदय व्यक्ति हैं। आपका छात्रोंके ऊपर बहुत स्नेह रहता है। पं. पन्नालालजी चौधरी सुपरिन्टेन्डेन्ट हैं। आप बहुत पुराने कार्यकर्ता एवं सुयोग्य व्यक्ति हैं।
__ बाबू हर्षचन्द्रजी वकील इस विद्यालयके अधिष्ठाता हैं और आपहीके काका साहब खजांची हैं। बाबू बनारसीदासजी अगरवाले इस विद्यालयके अनन्यभक्त थे, परन्तु आप परलोकवासी हो गये। समयकी बलिहारी है कि अब सब छात्रों की दृष्टि पाश्चात्य विद्याकी ओर झुक गई है। इसका फल क्या होगा! सो वीरप्रभु जानें। प्रायः सबकी दृष्टि इस ओर जा रही है कि शिक्षाकी बात पश्चात् और आजीविकाकी पहले। प्रत्येक संस्थामें अब इसी बातकी मीमांसा रहती है। यहाँसे सिंहपुरी गये।
सिंहपुरी (सारनाथ) में विशाल मन्दिर और एक बृहद् धर्मशाला है, जिसमें दो सौ मनुष्य सुखपूर्वक निवासकर सकते हैं। धर्मशालाके अहातेमें एक बड़ा भारी बाग है। मन्दिरमें इतना विशाल चौक है कि जिसमें पाँच हजार मनुष्य एक साथ धर्म श्रवण कर सकते हैं।
___ मैं जब दर्शन करके वापिस आ रहा था, तब एक साधु मिला । संन्यासी था। कानमें कुण्डल पहने था। गोरखनाथ को माननेवाला था। मुझसे बोला-मैं दर्शन करना चाहता हूँ। मैने उत्तर दिया 'आप सानन्द दर्शन कीजिये। उसके
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