Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 418
________________ जबलपुरमें गुरुकुल Jain Education International देवकीनन्दनजी आदि अनेक विद्वान् महानुभाव पधारे थे । सतनावाले स्वर्गीय धर्मदासजी एक विलक्षण पुरुष थे । आपने मढ़ियाजीके मेले पर प्रस्ताव किया कि यहाँ पर गुरुकुल होना चाहिये और उसके लिए दस हजार मैं स्वयं दूँगा । फिर क्या था ? जबलपुर समाजने एक लाखकी पूर्ति कर दी । अगहन मासमें उसका उत्सव हुआ । पण्डित वर्ग आया । सौ रुपया मासिक श्री सि. धर्मदासजीने दिया तथा अन्य लोगोने भी यथाशक्ति चन्दा लिखाया, जिससे तीन सौ रुपया मासिकसे अधिक चन्दा कार्य चालू करनेके लिये हो गया। रही गुरुकुलके मकानकी बात सो उसके लिये पंचोंने यह स्वीकार किया कि मन्दिरोंके धनसे पचास हजार रुपया देकर गुरुकुलका भवन बनवा दिया जावे । निश्चयानुसार मढ़ियाजीमें मकानका कार्य प्रारम्भ हो गया। वहीं पर श्री चौधरी सुरखीचन्द्रजीने नवीन मन्दिर बनवानेका निश्चय किया। बड़े समारोहके साथ विधिविधान पूर्वक दोनोंकी नींव भरनेका मुहूर्त हुआ । पचहत्तर हजार रुपया तो गुरुकुलके भवनमें लग चुके हैं। लगभग पच्चीस हजार रुपया और लगेंगे। इस प्रकार जबलपुरमें गुरुकुलका कार्य चलने लगा। उसमें इस समय तैंतालीस छात्र शिक्षा पा रहे हैं। तीन पण्डित, एक अँग्रेजी मास्टर, दो रसोइया तथा एक चपरासी इत्यादि कर्मचारी हैं । एक हजार रुपया मासिक व्यय हो रहा है। जबलपुरकी जनता बहुत श्रद्धालु है, परन्तु यहाँ कार्यकर्ता नहीं । यदि कोई चतुर कार्यकर्ता मिले तो यहाँ अच्छे-अच्छे कार्य अनायास चल सकते हैं । मैं यहाँपर दो वर्ष रहा, दस त्यागी रहे, अनेक लोगोंका आवागमन रहा, पर किसी प्रकार की त्रुटि नहीं पाई गई। यहीं पर ब्रह्मचारी खेमचन्द्र जीने क्षुल्लक दीक्षा ली, जो क्षेमसागरके नाम से प्रसिद्ध हैं। जबलपुर बड़ा चतुर शहर है । यहाँपर प्रायः सभी विद्वान् आते रहते हैं । वहाँका राजनैतिक क्षेत्र भी अच्छा हैं। श्री सेठ गोविन्ददासजी, जो कि केन्द्रीय असेम्बलीके सदस्य हैं। 1 के हैं। आप बहुत प्रौढ़ परोपकारी हैं। आपके करोड़ोकी सम्पत्ति है । आपका वैभव महाराजाओंके सदृश है फिर भी आपने देशहितके लिये उस वैभवकी कुछ भी परवाह नहीं की। आप देशहितके लिये कई बार कारागारके मेहमान हुए और आजकल तो देशहितके कार्यमें आपके चौबीस घण्टे जाते हैं। आपका व्याख्यान कई बार महावीर जयन्तीके समय मैने भी सुना । बहुत अच्छा बोलते हैं। अहिंसा धर्ममें आपकी पूर्ण श्रद्धा है श्रीयुत पं. द्वारिकाप्रसादजी मिश्र भी यहींके हैं, जो कि आजकल 385 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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