Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 433
________________ मेरी जीवनगाथा 400 लिये ढाई सौ रुपयेके अन्दाज चन्दा प्राप्त हो गया। यहाँ एक नन्हेंलालजी त्यागी जबलपुरवाले हैं। उनका अच्छा आदर है। आप ही प्रतिदिन शास्त्र-प्रवचन करते हैं। मैं यहाँसे यह विचार कर सद्गुवां चला गया कि दीपावली रेशन्दी-गिरिकी करूँगा। परन्तु वहाँ पहुँचनेपर विचार बदल गया, जिससे फिर दमोह पहुँच गया। इतने में ही पं. जगन्मोहनलालजी शास्त्री कटनी, पं. महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य, पं. पन्नालालजी काव्यतीर्थ तथा पं. फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री बनारस आ गये, जिससे बहुत ही आनन्दसे वीर-निर्वाणोत्सव हुआ। आप लोगों के परिश्रम से वहाँ की सब संस्थाओं का केन्द्रीकरण हो गया तथा समाज में परस्पर अतिसौमनस्य हो गया। सेठ गुलाबचन्द्रजी ने जो कि समाज में धन में सर्वश्रेष्ठ हैं, इस एकीकरणको बहुत ही उत्तम माना और कहा कि मेरे पास मन्दिरोंका जो हिसाब है, समाज चाहे तो उसे अभी लेले। परन्तु समाजने आप ही को कोषाध्यक्ष रक्खा । श्री राजाराम बजाज तथा अभानाके रहनेवाले श्री खूबचन्द्रजी साहबने भी इस कार्य में समयोचित खूब परिश्रम किया। यहाँ की नवयुवक पार्टी ने एक जैन हाईस्कूल खोलने का दृढ़ संकल्प किया। समाजने उसमें यथाशक्ति योगदान दिया। आशा है आगामी वर्ष से यह कार्य प्रारम्भ हो जावेगा तथा पण्डित जी के मिलने पर स्वाध्याय मन्दिर का कार्य भी शुरू हो जावेगा। संसार की दशा प्रत्येक कार्य में अन्यत्वभावना का पाठ पढ़ाती है। जिन पण्डित महाशयों का संयोग हुआ था वह वियोगरूप हो गया और मैं भी समाज से पृथक् होकर सद्गुवां आ गया। बुन्देलखण्डका पर्यटन सदगुवांसे भोजन कर चला और नोरू सो गया। वहाँ से सात मील चलकर किंदरय आया। भोजन किया। यहाँ लोगों पर मन्दिर का रुपया आता था, कहा गया तो पाँच मिनट में तीन सौ पचहत्तर रुपया आ गया तथा परस्पर का वैमनस्य दूर होकर सौमनस्य हो गया। यहाँ से पाँच मील चलकर सूखा आये। यहाँ चित्रकूटका एक साधु था, जो साक्षर था और मन्दकषायी भी था। कुछ चर्चा हुई। रामायणका ज्ञाता था। 'ईश्वर की कृपासे सब कार्य होते हैं, हम करनेवाले कौन ?' ऐसी उसकी मान्यता थी। वस्तुतः इस मान्यता में तथ्य नहीं। हाँ, इतना अवश्य है कि अहंकार की वासना मिट जाती हैं। कालान्तर में ऐसे प्राणियों का कल्याण हो सकता है। उसने यह कहा कि 'आप लोग तो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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