Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 441
________________ मेरी जीवनगाथा 408 हैं। आपने आष्टाह्निका पर्व में होनेवाले उत्सवके समय पाठशालाको एक सहस्र स्थायी द्रव्य दिया तथा एक कमरा छात्रावास के लिये भी बनवा दिया। आप जितना समय व्यापार में देते हैं, यदि उसका दसवाँ भाग भी विद्यालयको देने लगें तो उसकी उन्नति सहज ही हो सकती है। यहाँ पर श्री स्वर्गीय अलया कन्हैयालालजी सब्जी के कुशल व्यापारी थे। उनके वर्तमान में अनेक सुपुत्र हैं। वे भी पाठशालाको अच्छी सहायता करते रहते हैं। यहाँ से छ: मील पर एक खिसनी ग्राम है। वहाँ पर श्री सिंघई छोटेलालजी बड़े धर्मात्मा हैं। आपकी धर्ममाता ने १००१) बरुआसागर की पाठशाला को अभी दिये और एक हजार पहले भी दिये थे। पाठशाला का उत्सव इन्हीं की अध्यक्षता में हुआ था। आपने दस रुपये मासिक सदैव के लिये पाठशाला को देना स्वीकृत किया। आप बहुत ही योग्य तथा मिष्टभाषी व्यक्ति हैं। आपसे सर्व जनता प्रसन्न रहती जब लोगों के स्वाभाविक अनुरागने मुझे आगे जाने से रोक दिया तब मैंने बरुआसागर के आस-पास ही भ्रमण करना उचित समझा। फलतः मैं मगरपुर गया। यहाँ पर स्वर्गीय बाईजी के भाई कामताप्रसाद रहते थे। यहीं पर श्रीराम भरोसेलालजी सिंघई रहते हैं। जो बहुत ही योग्य धार्मिक व्यक्ति हैं। आप व्यापार में अतिकुशल हैं। साथ ही स्वाध्याय के प्रेमी भी हैं। स्वाध्याय प्रेमी ही नहीं, गोलालारे जाति के कुशल पंच भी हैं। आप प्रान्तीय गोलालारे सभा के सभापति भी रह चुके हैं। आपको जाति उत्थानकी निरन्तर चिन्ता रहती है। आपका भोजनपान शुद्ध है। आपने बरुआसागर विद्यालय को १००१) दिया। आपके दो सुपुत्र हैं। दोनों ही सदाचारी हैं। यहीं स्वर्गीय बाईजी के दूसरे भाई स्वर्गीय अडकूलालजी सिंघई रहते थे। आप बड़े उदार थे तथा बरुआसागर विद्यालय की निरन्तर सहायता करते थे। मगरपुर से दुमदुमा गया। यह वही दुमदुमा है जहाँ के पण्डित दयाचन्द्रजी जैन संघ मथुरा में उपदेशक हैं | आप योग्य व्यक्ति हैं | आपके घर पर शुद्ध भोजन की व्यवस्था है। यहाँ के श्रीमान् मनोहरलालजी वर्णी हैं, जो आजकल उत्तर प्रान्त में रहते हैं ओर निष्णात विद्वान् हैं। आपके द्वारा सहारनपुर में एक गुरुकुल की स्थापना हो गई है। यदि आप उसमें अपना पूर्ण उपयोग लगा देवें तो वह संस्था स्थायी हो सकती है। आप प्रत्येक कार्य में उदासीन रहते हैं पर यह निश्चित है कि उपयोग की स्थिरता के बिना किसी भी कार्य का होना असम्भव है। चाहे वह लौकिक हो और चाहे पारलौकिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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