Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 435
________________ मेरी जीवनगाथा 402 दूर रहे। यहाँ से चलकर सुरईके गाँव आया। यहाँ पर आठ घर जैनियोंके हैं। ग्राम बहत सुन्दर है। यहाँ पाठशाला स्थापित हो गई । यहाँ से चलकर श्री सिद्धक्षेत्र नैनागिरि आ गये। यहाँ आठ दिन रहे । यहीं पर राजकोट में श्रीयुत् सेठ मोहन भाई घिया आये थे। आप बहुत ही सज्जन हैं। आपकी जैनधर्म में गाढ़ श्रद्धा है। आपकी धार्मिक रुचि बहुत ही प्रशंसनीय है। बहुत ही उदासीन हैं। आपके घर में एक चैत्यालय है, जिसका प्रबन्ध आप ही करते हैं। आपके प्रतिदिन पूजाका नियम है। आपका व्यवहार अति निर्मल है। आपके साथ ताराचन्द्रजी ब्रह्मचारी का घनिष्ठ सम्बन्ध है। कुछ दिन रहकर आप तो गिरिराज की यात्रा के लिए चले गये। पर ब्र. ताराचन्द्रजी हमारे साथ रहे। क्षेत्र पर एक पाठशाला है, जिसमें पं. धर्मदासजी न्यायतीर्थ अध्यापक हैं। बहुत ही सुयोग्य हैं। परन्तु पाठशाला में स्थायी फंड की न्यूनता है। इस ओर अभी इस प्रान्तकी समाज का लक्ष्य नहीं । यहाँ से सात मील चलकर बमौरी आए। श्रीमान् क्षुल्लक क्षेमसागर जी यहीं के हैं। आपका कुटुम्ब सम्पन्न है। एक पाठशाला भी चलती है। कई महाशय अच्छे सम्पन्न हैं। श्री दरबारी लालजी बड़े उत्साही और प्रभावशाली व्यक्ति हैं। नैनागिरि क्षेत्र के यही मंत्री हैं, राज्यमान्य भी हैं और उदार भी हैं। परन्तु विद्या की उन्नति में तटस्थ हैं। यहाँ से तीन मील चलकर सुनवाहा आये। यहाँ जैनियोंके बीस घर हैं। एक पाठशाला भी तीस रुपया मासिक के व्यय से चला रहे हैं। यहाँ से चलकर वकस्वाहा पहँचे । यह पन्ना रियासतकी तहसील है। यहाँ पच्चीस घर जैनियों के होंगे। दो मन्दिर हैं। एक परवारों का और एक गोलापूर्वोका। यहाँ के जैनी प्रायः सम्पन्न हैं | पाठशाला के लिए पाँच हजार रुपया का चन्दा हो गया। चन्दा होना कठिन नहीं, परन्तु काम करना कठिन है। देखें, यहाँ कैसा काम होता है। यहाँ तीन दिन रहे। एक बात विलक्षण हुई । वह यह कि एक जैनीका बालक गाय ढीलने के लिए गाँवके बाहर जाता था। गायके साथ उसका बछड़ा भी था। बालकने बछड़े को एक मामूली लाठी मार दी, जिससे वह मर गया। गाँव के लोगों ने उसे जातिसे बाहर कर दिया, परन्तु बहुत कहने सुनने पर उसे जाति में सम्मिलित कर लिया। यहाँ से चलकर फिर बमौरी आये और एक दिन वहाँ रहकर खटौरा आ गये। यहाँ पर श्री भैयालालजी कक्कू बहुत ही धर्मात्मा जीव हैं। आपने दो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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