Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 428
________________ सागरमें सर सेठ हुकुमचन्द्रजीका शुभागमन 395 'आज सर सेठ साहबकी पचहत्तरवीं जन्म-गाँठ है' यह जानकर सागरकी जनतामें अपूर्व आनन्द छा गया। लाउडस्पीकरके द्वारा समस्त नगरमें जन्मगाँठके उत्सवकी घोषणा की गई। फलस्वरूप आठ बजते बजते विद्यालयके प्रांगणमें कई हजारकी भीड़ उपस्थित हो गई। श्री भगतजी की अध्यक्षतामें उत्सवका कार्यक्रम शुरू हुआ। जिसमें समागत एवं स्थानीय विद्वानोंने सेठजी के गुणोंपर प्रकाश डालते हुए आपके प्रति मंगलकामना की। सेठजीने अपनी लघुता बतलाते हुए सारपूर्ण वक्तव्य दिया और अन्तमें यह प्रकट किया कि 'मैं पच्चीस हजार रुपयाकी रकम वर्णीजीकी इच्छानुसार दानके लिए निकालता हूँ।' सेठजीकी इस दानशीलताकी प्रत्येक नागरिक प्रशंसा कर रहा था। २० जूनको प्रातःकाल पुनः उसी मन्दिरमें शास्त्रप्रवचन हुआ। आज कलकी अपेक्षा अधिक भीड़ थी। अपराह्नमें तीन बजेसे गत दिनकी तरह पुनः तत्त्वचर्चाका कार्य प्रारम्भ हुआ। प्रायः सभी विद्वानोंको दस-दस मिनटका समय देकर तत्त्वका यथार्थ स्वरूप प्रतिपादन करनेकी व्यवस्थाकी गई थी। कितनी ही अश्रुतपूर्व शैलियोके द्वारा तत्त्वका प्रतिपादन हुआ। सेठजी घड़ी पर दृष्टि डाले हुए समयकी सुन्दर व्यवस्था बनाये हुए थे। दस मिनट हुए नहीं कि सेठजीने वक्ताको सचेत कर दिया। आज ही रात्रिके आठ बजेसे सेठजीके सम्मानके लिये कटरा बाजारमें आम सभा बुलाई गई थी। सेठजी एक बड़े जुलूसके साथ सभास्थान पर लाये गये। श्रीमान् मलैया शिवप्रसादजीकी अध्यक्षतामें सभाका कार्यक्रम शुरू हुआ। प्रथम ही पं. पन्नालालजीने संस्कृतके सुन्दर पद्यों द्वारा सेठजी तथा आगन्तुक ब्रह्मचारियों एवं विद्वानोंका अभिनन्दन किया। अनन्तर मुन्नालालजी समगौरयाने सेठजीके जीवनपर प्रकाश डाला। फिर जैन समाज तथा स्थानीय संस्थाओंकी ओरसे मानपत्र समर्पित किए गए। श्री भैयालाल सर्राफ वकील तथा मौलवी चिरागुद्दीन साहबने सेठजी के विषयमें अजैन जनताकी ओरसे पर्याप्त सम्मान प्रकट किया। अनन्तर मानपत्रोंके उत्तरमें सेठजीने अपनी लघुता बतलाते हुए स्थानीय संस्थाओंके लिए पच्चीस सौ रुपएके दानकी और भी घोषणा की। २१ जून को प्रातःकाल मन्दिरमें पहुँचते ही मैंने सागर समाजसे कहा कि 'यदि आप लोग सेठजीके पच्चीस हजार रुपया अपने विद्यालयको चाहते हो तो अपने पच्चीस हजार रुपया और मिलाइये, अन्यथा मैं प्रान्तकी अन्य संस्थाओंको वितरण कर दूंगा।' सुनते ही सागर समाजने चन्दा लिखाना शुरू कर दिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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