Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 427
________________ मेरी जीवनगाथा 394 सूत्रमें 'संजद' पदकी आवश्यकतापर मार्मिक भाषण हुआ और उन्होंने सबकी शंकाओंका समाधान भी किया। इसमें श्री पं. वर्द्धमानजी सोलापुरने अच्छा भाग लिया था। अन्तमें सब विद्वानोंने मिलकर निर्णय दिया कि धवल सिद्धान्त तेरानवें सूत्रमें 'संजद' पदका होना आवश्यक हैं। जब शिक्षणशिविरका अन्तिम दिन आया तब सागर समाजने सादर स्वागत कर समस्त विद्वानोंका आभार माना और यह भावना प्रकट की कि फिर भी हम लोगोंके ऐसे सौभाग्य उदयमें आवें, जिससे आप लोगोंका समागम पुनः प्राप्त हो । अन्तिम दिन रात्रिके समय कटरा बाजारमें आमसभा हुई, जिसमें आगत विद्वानोंके सारगर्भित भाषण हुए। दूसरे ही दिन बाहरके विद्वान् अपने-अपने स्थानों पर चले गये। एक माह तक एक साथ रहनेके कारण उनमें परस्पर जो सौहार्द उत्पन्न हो गया था उसके फलस्वरूप सबके हृदय बिछुड़नेके समय गद्गद् थे। सागरमें सर सेठ हुकुमचन्द्रजीका शुभागमन १८जून सन् १६४६ की रात्रिको मोटर द्वारा श्रीमान् राज्यमान्य, सब विभवसम्पन्न सर सेठ हुकुमचन्द्रजीका शुभागमन हुआ। आपके साथ श्रीमान् ब्र. प्यारेलालजी भगत, पं. देवकीनन्दनजी, पं. बंशीधरजी, पं. जीवन्धरजी तथा अन्य त्यागी महाशय भी थे। सभी अतिथि स्वागतके साथ वर्णी भवनमें ठहराये गये। १६ जूनको प्रातःकाल जब मैं शान्तिनिकुँजसे विद्यालयमें आया तब सेठजी साहब बड़ी प्रसन्नतासे मिले व निश्चित कार्यक्रमके अनुसार आज शास्त्र-प्रवचन भी चौधरनबाईके मन्दिरमें हुआ। मन्दिर स्थानीय जैन जनतासे खूब भरा हुआ था। प्रवचनका ग्रन्थ समयसार था। मैंने 'सुदपरिचिदाणुभूदा सव्वस्स वि काम-भोगबन्धकहा' इस गाथापर प्रवचन किया। प्रवचन चल ही रहा था कि सेठजी बीचमें बोल उठे-'महाराज ! मुझे प्रवचन सुनकर अपार आनन्द हुआ है। सागरकी जनता बड़ी भाग्यशाली है, जो निरन्तर ऐसे प्रवचन सुना करती है। मैं पहले मय बाल-बच्चोंके आनेवाला था, पर घरमें तबियत खराब हो जानेसे नहीं आ सका। आप एक बार इन्दौर अवश्य पधारें ।' मैंने सरल भावसे उत्तर दिया कि इस वर्ष तो समय थोड़ा रह गया है, आगामीके लिए भगतजीके साथ चर्चा करके कहूँगा, पर मैं आपसे एक ऐसा काम कराना चाहता हूँ जो आजतक किसीने न किया हो। पं. देवकीनन्दनजीने कहा कि 'ज्ञान और अर्थका संयोग तो होने दीजिए, सब कुछ हो जायेगा। इस पर सेठजी तथा समस्त जनता हँस पड़ी। अपराह्नमें गोष्ठी हुई, जिसमें पं. दयाचन्दजी, पं. बंशीधरजी, पं. देवकीनन्दनजी, पं. जीवन्धर जी आदिके मुखसे अपूर्व तत्त्वचर्चा हुई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460