Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 395
________________ मेरी जीवनगाथा 362 जब आकाशमें भरता होगा और चारों ओरसे जब मनुष्य, विद्याधर तथा देवगण उसमें प्रवेश करते होंगे तब कितना आनन्द न होता होगा ? भगवान्की जगत्-कल्याणकारिणी दिव्यध्वनिसे यहाँकी द्यावा-पृथ्वी गुञ्जित रही होगी। यह वही स्थान है जहाँ महाराज श्रेणिक जैसे विवेकी राजा और महारानी चेलना जैसी पतिव्रता रानीने आवास किया था। विपुलाचलपर दृष्टि जाते ही यह भाव सामने आ जाता है कि भगवान् महावीर स्वामीका समवसरण भरा हुआ है, गौतम गणधर विराजमान हैं और महाराज श्रेणिक नतमस्तक होकर उनसे विविध प्रश्नोंका उत्तर सुन रहे हैं। अस्तु, यहाँसे पैदल यात्रा करते हुए हम ईसरी आ गये, मार्गमें उत्तम-उत्तम दृश्य मिले। . गिरीडीहका चातुर्मास जब हजारीबाग आया तब ग्रामसे बाहर चार मील पर रात्रि हो गई। सड़क पर ठहरनेके लिये कोई स्थान नहीं था, केवल एक धर्मशाला थी, जो कि कलकत्तामें रहनेवाले एक मेहतरने बनवाई थी। चूंकि वह मेहतरकी बनवाई थी, इससे साथके लोगोंने उसमें ठहरनेमें एतराज किया। मैंने कहा-'भाईयों ! धर्मशाला तो ईंट-चूनाकी है। इसमें ठहरनेसे क्या हानि है ? इतनी घृणा क्यों ? आखिर वह भी तो मुनष्य है और उसने परोपकारकी दृष्टिसे बनवाई हैं। क्या उसको पुण्यबन्ध नहीं होगा ? बनवाते समय उसके तो यही भाव रहे होंगे कि अमुक जातिका शुभपरिणाम करे तभी पुण्यबन्ध हो। जिसके शुभपरिणाम होंगे वही पुण्यका पात्र होगा। जब कि चारों गतियोंमें सम्यग्दर्शन हो सकता है तब पञ्चलब्धियाँ होने पर यदि भंगीको सम्यग्दर्शन हो जावे तो कौन रोकनेवाला है ? जरा विवेकसे काम लो। जिसके अनन्त संसारका नाश करनेवाला सम्यग्दर्शन हो जावे और पुण्यजनक शुभ परिणाम न हो...यह बुद्धिमें नहीं आता।' एक बोला-'हम यह कुछ नहीं जानते, किन्तु लोकव्यहार ऐसा नहीं कि भंगी की धर्मशालामें ठहरा जावें ।' मैंने कहा- "किसी भंगीने चार आमके पेड़ मार्गमें लगा दिये। हम लोग घामसे पीड़ित होते हुए उस मार्गसे निकलें और छायामें बैठना ही चाहते हों कि इतनेमें कोई कह उठे कि ए मुसाफिर ! ये पेड़ भंगी ने लगाये हैं, तब क्या हम उनकी छायाको त्याग देंगे?' हमारे साथके आदमी बोले- 'वर्णीजी ! लोकमर्यादाका लोप मत करो।' मैंने कहा-"भैया ! लोकमर्यादा इसीको कहते हैं कि हम अस्पतालकी दवाइयाँ खावें, जहाँकी प्रत्येक कार्यकी सफाई करनेवाले यही भंगी होते हैं, जहाँ की औषधियाँ मांस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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