Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 413
________________ मेरी जीवनगाथा 380 प्रभावनाकारक हुआ। मेरी तो यह श्रद्धा है कि यदि ऐसे समारोह किये जावें तो जैनधर्म का अनायास प्रचार हो जावे, क्योकि स्वामी समन्तभद्रने कहा है कि - 'अज्ञानतिमिरव्याप्तिमपाकृत्य यथायथम्। जिनशासनमाहात्म्यप्रकाशः स्यात्प्रभावना।। विद्वानोंके साथ ही कई त्यागी महाशय भी पधारे थे, अतः उनसे भी त्यागके महत्त्वकी प्रभावना हुई, क्योंकि स्वामी अमृतचन्द्र सूरिने लिखा है कि 'आत्मा प्रभावनीयो रत्नत्रयतेजसा सततमेव । __दानतपोजिनपूजाविद्यातिशयैश्च जिनधर्मः ।' व्याख्यानोंका अच्छा प्रभाव रहा। व्याख्यानदाताओंमें पं. राजेन्द्रकुमारजी मंत्री भारतीय जैन संघ मथुरा, पं. कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री काशी, पं. जगन्मोहनलालजी कटनी, श्रीयुत् कर्मानन्दजी शास्त्री सहारनुपर जो कि पहले आर्यसमाजके दिग्गज एवं शास्त्रार्थकेशरी थे तथा सागर विद्यालयकी पंडितमंडली आदि प्रमुख थे। हिन्दी साहित्यके प्रसिद्ध लेखक श्रीजैनेन्द्रकुमारजी का भी अपूर्व भाषण हुआ। मथुरासे संघके सभी विद्वान् आये थे। इन महाशयोंके द्वारा लोकोत्तर प्रभावना हुई तथा देहलीनिवासी सर्व विदित पं. मक्खनलालजी का बहुत ही सफल व्याख्यान हुआ। आपने कन्या-विद्यालय के लिये दिल हिलानेवाली अपील की, जिसमें चौंतीस हजारका चन्दा हो गया। इस चन्दामें कटनी समाजने पूर्ण उदारताका परिचय दिया। पन्द्रह हजार रुपए तो अकेले सिं. धन्यमुमारजी ने दिये तथा शेष रुपये कटनी समाजके अन्य प्रमुख व्यक्तियोंने दिये, एतदर्थ कटनीसमाज धन्यवादका पात्र है। इसी अवसरपर कुँवर नेमिचन्द्रजी पाटनी भी, जो कि किसनगढ़ मिलके मैनेजर हैं, पधारे थे। आप बहुत ही सज्जन और विद्वान् हैं। विद्वान् ही नही, संसारसे विरक्त हैं। आपके पिताका नाम श्रीसेठ मगनमल्लजी है, जिनकी आगरामें प्रख्यात धार्मिक सेठ श्रीभागचन्द्रजीके साझेमें बड़ी भारी दुकान है। श्रीसेठ हीरालालजी पाटनी आपके चाचा हैं, जिन्होंने किसनगढ़में छह लाख रुपयाका दान किया है और जिसके द्वारा वहाँकी संस्थाएं चल रही हैं। आप तीन दिन रहे। आपके समागमसे भी मेलाकी पूर्ण शोभा रही। सागर तथा जबलपुरसे गण्यमान व्यक्ति भी पधारे थे। मैं श्रीसिंघई धन्यकुमारजीके बंगलामें, जो कि गाँवसे लगभग एक मीलपर एक रमणीय उद्यानमें है, ठहरा था। आपकी माँ बहुत ही सज्जन हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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