Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 412
________________ कटनीमें विद्वत्परिषद् 379 क्योकि जगतका उद्धार वही कर सकता है जो अपना उद्धार कर ले। अन्यथा सहस्रों हुए हैं और होंगे। जैसे हुए वैसे न हुए। मेरी श्रद्धा है कि जिस महानुभावने ज्ञानके द्वारा आत्मीय कल्याण न किया उसका ज्ञान तो भारभूत ही है। अन्धेकी लालटेनके सदृश उस ज्ञानका उसे कोई लाभ नहीं। मेरा ऐसा कहना नहीं कि सब ही की यह प्रवृत्ति है। बहुतसे महानुभाव ऐसे भी हैं कि स्व-पर कल्याणके लिए ही उनका ज्ञान है, किन्तु जिनका न हो उन्हें इस ओर लक्ष्य देना उचित है । अस्तु, जो हो, वे लोग जानें, या वीर प्रभु जानें, किन्तु मुझे तो पण्डितोंके समागमसे बहुत ही शान्ति मिली और इतना विपुल हर्ष हुआ कि इसकी सीमा नहीं। हे भगवन् ! जिस प्रान्तमें सूत्रपाठके लिये दस या बीस ग्राममें कोई एक व्यक्ति मिलता था, वह भी शुद्ध पाठ करनेवाला नहीं मिलता था, आज उन्ही ग्रामोंमें राजवार्तिकादि ग्रन्थोंके विद्वान् पाये जाते हैं, जहाँ गुणस्थानोंके नाम जाननेवाले कठिनतासे पाये जाते थे, आज वहाँ जीवकाण्ड और कर्मकाण्डके विद्वान् पाये जाते हैं। जहाँ पर पूजन-पाठका शुद्ध उच्चारण करानेवाले न थे आज वहाँ पंचकल्याणकके करानेवाले विद्वान् पाये जाते हैं। जहाँपर लोगोंको ‘जैनी नास्तिक है' यह सुननेको मिलता था आज वहींपर यह शब्द लोगोंके द्वारा सुननेमें आता है कि जैनधर्म ही अहिंसाका प्रतिपादन करनेवाला है, इसके बिना जीवका कल्याण दुर्लभ है। जहाँ पर जैनी परसे वाद करनेमें भयभीत होते थे आज वहीं पर जैनियोंके बालक पण्डितोंसे शास्त्रार्थ करनेके लिये तैयार हैं। इत्यादि व्यवस्था देखकर ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो आनन्दसागरमें मग्न न हो जावे। आज सब ही लोग जैनधर्मका अस्तित्व स्वीकार करने लगे हैं। सभी मतावलम्बी इस धर्मका गौरव स्वीकृत करने लगे हैं। इसका श्रेय इन विद्वानोंको ही तो है तथा साथ ही हमारे दानी महाशयोंको भी है जिनके कि द्रव्यदानसे यह मण्डली बन गई। कल्पना करो कि यदि श्री धन्यकुमार सिंघई और सकल पंच इस समारोहकी आयोजना न करते तो यह सौभाग्य जनताको प्राप्त होता ? हम तो जनताको भी धन्यवाद देते हैं कि उसने इस दृश्यको देखा यदि जनता न आती तो व्याख्यानोंका अरण्यरोदन होता। अपने अधिकारोंका सबने उपयोग किया। हीरा बहुमूल्य वस्तु है, परन्तु सुवर्ण यदि उसे अपने हृदयमें स्थान न दे तो उसकी क्या महिमा ? मोती उत्तम जातिके हों, पर यदि उन्हें सूतमें गुम्फिल न किया जावें तो हार संज्ञा नहीं पा सकते । इत्यादि कहाँ तक कहा जावे ? कटनीका यह समारोह बहुत ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460