Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 403
________________ मेरी जीवनगाथा 370 जिनालय हैं, पचास घर जैनियोंके हैं, जिनमें पण्डित दामोदर बहुत ही सुयोग्य हैं, धनाढ्य भी, साथ ही प्रभावशाली भी हैं। आपकी ग्राममें अच्छी मान्यता है। यहाँ पर स्वर्गीय छतारे सिंघईके दो पुत्र थे। उनमें एकका तो स्वर्गवास हो गया। उसके तीन सुपुत्र हैं। तीनों ही व्यापारमें कुशल हैं। दूसरे पुत्र प्यारेलालजी हैं, बहुत ही योग्य हैं। एक सेठ भी ग्राममें है जो बहुत योग्य हैं। इसी तरह अन्य महानुभाव भी अच्छी स्थितिमें हैं। यदि यह लोग पूर्ण शक्तिसे काम लेवें तो एक विद्यालय यहाँ चल सकता है। परन्तु इस ओर अभी दृष्टि नहीं है। __ यहाँसे चलकर वाराग्राम आये। ग्राममें तीन घर जैनियोंके हैं। मन्दिर बना रहे हैं, परन्तु उत्साह नहीं। यहाँसे चलकर नीमटोरिया आये। यहाँ पर पाँच जिनालय और जैनियोंके पच्चीस घर हैं। कई सम्पन्न हैं। तीन दिन ठहरा । एक पाठशाला भी स्थापित हो गई है। यहाँसे चलकर अदावन आये। यहाँपर एक मन्दिर बन रहा है-अधूरा पड़ा है, यहाँके ठाकुर बड़े सज्जन हैं। उन्होंने सब पञ्चायतको डाँटा और मन्दिरके लिये पर्याप्त चन्दा करवा दिया। यहाँसे चलकर किसुनपुरा बसे। वहाँसे चलकर जासोड़ेमें भोजन किया और शामको बरायठा पहुँच गये। __ सेठ कमलापतिजी यहींके हैं। उन्हींके मकानपर ठहरे । आपके सुपुत्रोंने अच्छा स्वागत किया। यहाँपर सेठ दौलतरामजी अच्छे धनाढ्य हैं। इनकी त्यागियोंके प्रति निरन्तर सहानुभूति रहती है। इन्हींके यहाँ भोजन हुआ। इनके उद्योगसे एक पाठशाला हो गई है। पं. पदमचन्द्रजी उसमें पैंतीस रुपया माहवारपर अध्यापक हुए हैं। ये सेठ कमलापतिके द्वितीय पुत्र हैं। विशारद द्वितीय खंड तक इन्होंने अध्ययन किया है। सुबोध हैं। विशेष विद्वान् हो जाते, परन्तु सेठजीकी बड़ी अनुकम्पा हुई कि विवाह कर दिया, अतः ये अगाड़ी न बढ़ सके। इसी तरह इस प्रान्तके माँ-बाप आत्मीय बालकों की उन्नतिके शत्रु बनते हैं। उनके पढ़ानेमें एक पैसा व्यय करना पाप समझते हैं। भाग्यसे स्कूल हुआ तो बालक किसी तरह चार क्लास हिन्दी पढ़ लेते हैं, बारह वर्षमें गृहस्थ बन जाते है, छोटीसी बहू घरमें आ जाती है, सासू आनन्दमें डूब जाती है, पश्चात् जब वह कुछ काल पाकर बड़ी हो जाती है तब उससे सब कराना चाहती है। बाल्य-विवाहके दोषसे बहू कमजोर हो जाती है, जब काममें आलस्य करती है तब वही सास उसे नाना अवाच्योंसे कौसती है, ताना मारती है तथा शारीरिक वेदना देती है। फल यहाँ तक देखा गया है कि कई अबलाएँ वेदना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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