Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 408
________________ सागरके अंचलमें हिसाब-किताब पचासों वर्षसे श्रीदयाचन्द्रजी बजाजके पास चला आ रहा है वह हिसाब आपने सहर्ष पञ्चोंके अधीन कर दिया। आगेके लिये श्री सिंघई लक्ष्मणप्रसादजी हरदीवाले इसके प्रबन्धक हुए । नियमानुसार कमेटीका चुनाव हो गया। Jain Education International 375 यहाँ से चलकर हरदी आया और सिंघई श्रीलक्ष्मणप्रसादजी के यहाँ ठहरा | आपका स्वास्थ्य एक वर्षसे अच्छा नहीं था। आपने एक वर्षके लिये ब्रह्मचर्यव्रतकी प्रतिज्ञा ली तथा मेरी मूँगाकी मालासे णमोकार मन्त्रका जाप किया। आपका स्वास्थ्य सुधरने लगा । आपके यहाँ जो अतिथि आता है। उसका स्वागत बड़े उत्साह और भक्तिसे होता है । आप बड़े तेजस्वी हैं। गाँव भरमें आपकी धाक है । हम जितने दिन रहे, बराबर दिन-रात रोशन चौकी बजती थी। किसी प्रकारकी त्रुटि देखनेमें नहीं आई। आप दस गाँवके जमींदार हैं। यदि कोई विद्वान् आपके यहाँ रहे तो आप सौ रुपया मासिक देने को उत्सुक हैं। बड़ी कठिनाईसे आपके यहाँसे चलकर गढ़ाकोटा आये । यह गाँव प्राचीन है। यहाँ बड़े-बड़े वैभवशाली मनुष्य हो गये हैं । यहाँका चौधरी घराना बहुत प्रसिद्ध था । अब भी एक मोहल्ला उसी नामसे पुकारा जाता है । यहाँपर श्री पन्नालाल वैशाखिया बड़े धर्मात्मा थे। उनकी धर्मपत्नी मुलाबाई थी। उसके पास एक दुकान, मकान, एक आठ तोले सोनेकी टकावर और एक चाँदीका थाल था । कुछ रुपया सागरमें भी जमा था । इन्दौरमें उसका स्वर्गवास हो गया । वह बड़ी सज्जन धर्मात्मा विदुषी महिला थी। उसने अन्तिम समय श्रीभगतजी आदिके समक्ष एक कागजमें यह लिख दिया कि मेरा जो धन है वह वर्णीजीके पास भेज दिया जावे। उनकी इच्छा हो, सो करें यह तो उस स्वर्गीया बाईका अभिप्राय था, परन्तु उसके कुटुम्बियोंने जो पहलेसे ही पृथक् थे, उसकी दुकान और मकानपर कब्जा कर लिया और हमसे बोले कि नालिस कर लो ! मेरे पास उसका जो कुछ था वह मैने वहाँकी पाठशालाके मन्त्रीको दे दिया और कहा कि वह तो दान कर गई पर इन्हें बलात्कार छीनना है, ले लें। परन्तु फल उत्तम न होगा । पापके परिणामोंमें कभी भी सुख नहीं होता । इस प्रकार व्यवस्था कर वहाँसे नैनागिरिके मेलाको चला गया। मेला अच्छा हुआ । पाठशालाको दस हजार रुपयेके लगभग रुपया इकट्ठा हो गया । यह क्षेत्र बहुत ही रम्य है । यहाँपर छोटीसी पहाड़ी है। उसपर अनेक मन्दिर हैं । पन्द्रह मिनटमें धर्मशालासे पहाड़ पर पहुँच जाते हैं। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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