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ईसरीमें उदासीनाश्रम
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कलकत्ताका एक बड़ा मकान, जिसका दो सौ रुपया मासिक भाड़ा आता है, लगा दिया और उसका विधिवत् ट्रस्ट भी कर दिया ।
वर्तमानमें छः उदासीन उसमें रहते हैं । सब तरहके धर्मसाधनका सुभीता है। श्रीभरीलालजीके पिता और बाबू गोविन्दलालजी अपने खर्चसे रहते हैं। श्री भोंरीलालजीके पिता प्रेमसुखजीकी देखरेखमें आश्रम सानन्द चलने लगा । आश्रमवासी त्यागी अपना काल निरन्तर धर्म साधनमें लगाते हैं । श्रीयुत् प्यारेलाल भगतजी इसके अधिष्ठाता हैं। आप इन्दौर आश्रमके भी अधिष्ठाता हैं। सालमें दो बार आते हैं । शान्त स्वभाव और दयालु हैं। आपके द्वारा राजाखेड़ा में बड़ी भारी पाठशाला चल रही है। उसका संचालन भी आपके ही द्वारा होता है । सालमें एक या दो बार आप वहाँ जाते हैं। कलकत्ताके बड़े-बड़े सेठ आपके अनुयायी हैं। बाबू सखीचन्द्रजी केसरेहिन्द आपसे धर्मकार्योंमें पूर्ण सम्मति लेते थे। श्रीमान् सर सेठ हुकुमचन्द्रजीकी धर्मगोष्ठीमें आप प्रमुख हैं । आपके विषयमें अधिक क्या लिखूँ इतना ही बस है कि आप मेरे जीवनके प्राण
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कुछ दिनके बाद यहाँ पर श्री पतासीबाई गया और कृष्णाबाई कलकत्ता आकर धर्मसाधन करने लगीं। आपके साथ-साथ आगरावाली बाइयाँ भी थीं। इन बाइयोंमें श्री पतासीबाई गयावाली बहुत विवेकवती हैं। आपको शास्त्रज्ञान बहुत ही उत्तम है। आप विरक्त हैं, निरन्तर स्वाध्यायमें काल लगाती हैं प्रतिदिन अतिथिको दान देनेमें आपकी प्रवृत्ति रहती है। आपके द्वारा गयाकी स्त्रीसमाजमें बहुत ही सुधार हुआ है। आपके प्रयत्नसे वहाँ स्त्रीशिक्षाके लिये पन्द्रह हजार रुपया हो गया है । आपने दो हजार रुपया स्याद्वाद विद्यालय बनारसको दिये हैं। केवल सौ रुपया वार्षिक सूदका लेती हैं। मेरी आपने बाईजी की तरह रक्षा की है ।
इसी तरह कृष्णाबाई भी उत्तम प्रकृति की हैं। आपको गोम्मटसारका बोध हैं। सामायिकमें त्रिमूर्ति की तरह स्थिर बैठी रहती हैं। एक बार भोजन करती हैं। दो धोतियाँ तथा ओढ़ने बिछाने के लिए दो चद्दर रखती हैं । भयंकर शीतकालमें एकही चद्दरके आश्रय पड़ी रहती हैं । निरन्तर अपना समय स्वाध्यायमें बिताती हैं। साथ में इनके एक ब्राह्मणी है जो बहुत ही विवेकवाली हैं। अब आप ईसरीसे श्री महावीरको चली गई हैं। वहाँ आपने एक मुमुक्षु महिलाश्रम खोला है। आपके पास जो द्रव्य था वह भी उसीमें लगा दिया है।
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