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मेरी जीवनगाथा
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कागजमें लिखा है-'बेटा ! आजतक हमारा तुम्हारा पिता पुत्रका सम्बन्ध था। हमने तुम्हारे लिए बहुत यत्नसे धनार्जन किया, परन्तु अन्यायसे नहीं कमाया। इतनी बड़ी पर्यायमें हमने कभी परदारको कुदृष्टिसे नहीं देखा, कोई भी त्यागी हमारे यहाँ आया, हमने यथाशक्ति उसे भोजन कराया और यदि उसने तीर्थयात्रादिके लिये कुछ माँगा तो यथाशक्ति द्रव्य भी उसे दिया। यद्यपि इस समय विद्यादानकी सबसे अधिक आवश्यकता है, परन्तु हमारे पास पुष्कल द्रव्य नहीं कि उसकी पूर्ति कर सकें। धनार्जन तो बहुत लोग करते हैं, परन्तु उसका सदुपयोग बहुत कम करते हैं। तुम हमारी एक बात मानना-हमने आजन्म सादे वस्त्रोंसे अपना जीवन बिताया, अतः तुम भी कदापि अनुसेव्य वस्त्रोंका व्यवहार न करना। और जो यह २०० रक्खे हैं उन्हें विद्यादान में लगा देना। अथवा तुम्हारी जहाँ इच्छा हो सो लगाना। अपने प्रान्तमें जो तेरईकी चाल है वह देखादेखी चल पड़ी है। इसे विशेष रूप देना अच्छा नहीं, अतः सामान्यरूपसे करना । यदि लोग तुम्हारे साथ जबर्दस्ती करें तो रश्म न मेंटना, कर देना। परन्तु विवाहकी तरह नाना पक्वान्न न बनाना। साथ ही अपनी जातिवालोंको खिलाकर दीन-दुःखी जीवोंको भी खिला देना।'
दूसरे परचामें लिखा था कि आत्माकी अचिन्त्य शक्ति है। कर्मने उसे संकुचित कर रक्खा है, अतः जो उसे बिकसित करना चाहते हैं वे कर्मका मूल कारण जो मोह है उसे अवश्य त्यागें। मैंने जो वस्त्रोंका त्याग किया है सो बुद्धिपूर्वक किया है। वस्त्रकी तरह मैंने सब परिग्रहका त्याग किया है। परिग्रह त्याग करते समय मेरे अन्तरंगमें यह भाव नहीं हुए कि इसकी कुछ व्यवस्था कर जाऊँ, क्योंकि जो वस्तु ही हमारी नहीं है उसकी व्यवस्था करना कहाँ तक न्यायोचित है। २००) जो रख दिये हैं सो केवल लोकपद्धतिकी रक्षाके लिये । वास्तवमें तो वस्तु हमारी नहीं है उसके वितरणका हमें क्या अधिकार है ? बहुत कुछ लिखनेका भाव था, परन्तु अब मेरे हाथमें शक्ति नहीं।
___ यह बात उनके पुत्रके मुखसे सुनी। रात्रिको उसी ग्राममें रहे। प्रातःकाल भोजन कर हम दोनोंने सागरके लिये प्रस्थान किया। वहाँसे चलकर बहेरिया ग्रामके कुआपर पानी पीने लगे। इतनेमें ही क्या देखते हैं कि सामने एक बालक और उसकी माता खड़ी है। बालककी अवस्था पाँच वर्षकी होगी। उसे देखकर ऐसा मालूम होता था कि वह प्यासा है। मैंने उसे पानी पिला दिया
और हमारे पास खानेके लिये जो कुछ मेवा थे, उस बालकको भी थोडेसे दे दिये। पश्चात् मैंने और कमलापतिजी सेठने पानी पिया और थोड़ा-थोड़ा मेवा
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