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मेरी जीवनगाथा
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उनका पूर्ण प्रबन्ध कर देता है। ग्राममें एक मन्दिर है। उसमें देशी पत्थरकी विशाल वेदी है, जिसका श्री सिंघई कुन्दनलालजी सागरने भैयालाल मिस्त्रीके द्वारा निर्माण कराया था। उसमें बहुत ही सुन्दर कला कारीगरने अडि.कत की है। वेदिकामें श्रीऋषभ जिनेन्द्रदेवकी ढाई फुट ऊँची संगमर्मरकी सुन्दर प्रतिमा है जिसके दर्शनसे दर्शकको शान्तिका आस्वाद आ जाता है। यहाँ पर इन्हीं दिनों गोवर्धन भोजक आया था। उसका गाना सुनकर यहाँके क्षत्रिय लोग बहुत प्रसन्न हुए। यहाँ तीन दिन रहे । पश्चात् यहाँसे चलकर गोरखपुर पहुंचे। यहाँ प्राचीन जैन मन्दिर है। पन्द्रह घर जैनियोंके हैं जो परस्पर कलह रखते
यहाँसे चलकर घुवारा आये। यहाँ पर पाँच जिनमन्दिर हैं। यहाँपर पण्डित दामोदरदासजी बहुत तत्त्वज्ञानी हैं। आप वैद्य भी हैं। यहाँपर परस्परमें कुछ वैमनस्य था । यह एक साधुके आग्रह और चेष्टासे शान्त हो गया। यहाँसे चलकर बड़गाँव आये और वहाँसे चलकर पठा आये। यहाँ पर पं. बारेलालजी वैद्य बहुत सुयोग्य हैं। इनके प्रयाससे अहार-क्षेत्रोंकी उन्नति प्रतिदिन हो रही है। यहाँसे चलकर अतिशय क्षेत्र पपौरा आ गये। यहाँ पर तीन दिन रहे। यहाँसे चलकर वरमा आये और वहाँसे चलकर दिगौड़ा पहुंचे। यह दिगौड़ा वही है जहाँ कि श्रीदेवीदासजी कविका जन्म हुआ था। आप अपूर्व कवि और धार्मिक पुरूष थे। आपके विषयमें कई किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं
आप कपड़े का व्यापार करते थे। एक बार आप कपड़ा बेचने के लिए बछौड़ा गये थे। वहाँ जिनके मकानमें ठहरे थे उनके एक पाँच वर्षका बालक था। वह प्रायः भायजीके पास खेलने के लिए आ जाता था। उस दिन आया और आध घण्टा बाद चला गया। उसकी माँ ने उसके बदन से झुगलिया उतारी तो उसमें उसके एक हाथ का चाँदी का कड़ा निकल गया। माँने विचार किया कि भायजी साहबने उतार लिया होगा। वह उसके पास आई और बोली कि 'भायजी ! यहाँ इसका चूरा तो नहीं गिर गया ?' भायजी उसके मन का पाप समझ गये और बोले कि 'हम कपड़ा बेचकर देखेंगे, कहीं गिर गया होगा। वह वापिस चली गई। आपने शीघ्र ही सुनारके पास जाकर पाँच तोले का कड़ा बनवाकर बालककी माँ को सौंप दिया। माँ कड़ा पाकर प्रसन्न हुई। भायजी साहब बाजार चले गये। दूसरे दिन जब बालककी माँ बालक को अँगुलिया पहनाने लगी तब कड़ा निकल पड़ा मन में बड़ी शर्मिन्दा हुई और जब बाजार
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