________________
52
मेरी जीवनगाथा
I
वन्दना सुखपूर्वक होगी। निद्रा नहीं आई, हम दोनों ही श्रीपार्श्वके चरित्रकी चर्चा करते रहे । चर्चा करते-करते ही एक बज गया। उसी समय शौचादि क्रियासे निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहिने और एक आदमी साथ लेकर श्रीगिरिराजकी वन्दनाके लिए प्रस्थान कर दिया। मार्गमें स्तुति - पाठ किया । स्तुति - पाठके अनन्तर मैं मन ही मन कहने लगा कि 'हे प्रभो ! यह हमारी वन्दना निर्विध्न हो जावे। इसके उपलक्ष्यमें हम आपका पञ्चकल्याणक पाठ करेंगे। ऐसा सुनते हैं कि अधम जीवों को वन्दना नहीं होती। यदि हमारी वन्दना नहीं हुई तो हम अधम पुरुषोंकी श्रेणीमें गिने जावेंगे; अतः हे प्रभो ! हम और कुछ नहीं माँगते । केवल यही माँगते हैं कि आपके स्मरण प्रसादसे हमारी यात्रा हो जावे । हे प्रभो ! आपकी महिमा अवर्णनीय है । यदि न हुई तो हमारा जीवन निष्फल है । आशा है हमारी प्रार्थना विफल न जावेगी । प्रभो ! मेरी I प्रार्थनापर प्रथम ध्यान दीजिये, मैं बड़े कष्टसे आया हूँ, इस भीषण गर्मी में यात्राके लिये कौन आता है ? आपके जो अनन्य भक्त हैं, वे ही इस भीषण समयमें आपके गुणगान करते हुए गिरिराजपर आते हैं' इत्यादि' कहते-कहते श्रीकुन्थुनाथ स्वामीकी शिखर पर पहुँच गया। उसी समय आदमीने कहा कि - 'सावधान हो जाओ श्रीकुन्थुनाथ स्वामीकी टोंक आ गई। दर्शन करो और मानवजन्मकी सफलताका लाभ लो ।'
हम दोनोंने बड़े ही उत्साहके साथ श्रीकुन्थुनाथ स्वामीकी टोंक पर देव, शास्त्र, गुरुका पूजन किया और वहाँसे अन्य टोकों की वन्दना करते हुए श्रीचन्द्रप्रभकी टोंक पर पहुँचे । अपूर्व दृश्य था । मनमें आया कि धन्य हैं उन महानुभावोंको, जिन्होंने इन दुर्गम स्थानोंसे मोक्षलाभ लिया। श्रीचन्द्रप्रभ स्वामीकी पूजन कर शेष तीर्थकरोंकी वन्दना करते हुए जलमन्दिर आये । यहाँ बीचमें श्रीपार्श्वनाथ स्वामीकी प्रतिमाके, जो कि श्वेताम्बर आम्नाय - अनुकूल थी, नेत्र आदि जड़े थे। बगलमें दो मन्दिर और भी थे जिनमें दिगम्बर सम्प्रदायके अनुकूल प्रतिबिम्ब थे। वहाँसे वन्दना कर श्री पार्श्वनाथकी टोंकपर पहुँच गये। पहुँचते ही ऐसी मन्द सुगन्धित वायु आई कि मार्गका परिश्रम एकदम चला गया। आनन्दसे पूजा की। पश्चात् मनमें अनेक विचार आये, परन्तु शक्तिकी दुर्बलतासे सब मनोरथ विफल हुए ।
वन्दना निर्विध्न होनेसे अनुपम आनन्द और मनमें जो यह भय था कि यदि वन्दना न हुई तो अधम पुरुषोंमें गणना की जावेगी वह मिट गया । फिर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org