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कर्मसे पूर्ण भरा गोभिल--गृहखसुत्र
देखिये ? कितने अन्यायकी बात है ?. जैनशास्त्रमें कहीं। ऐसा जिकर ही नहीं कि, जैनी तांत्रिकवादी बन गए थे. इस विषय में ऐसा असत्य लिखना और वैदिकधर्म जो तांत्रिक मत जैसे हुआ है; जैसे कि, इसी पुस्तकके अंतभागमें आदिके पाठसे साफ सिद्ध हो जायगा कि, जहां पर अमुक मंत्र पढ़ कर मांसकी बलि देना, अमुक मंत्र पढ़ कर गौको काट डालना, इस प्रकार चमडा उघडना ऐसे ऐसे अनर्थ सूचक लेख जिन वेद धर्मियोंके शास्त्रोमें होवे उस वेदधर्ममें तंत्रवादकी असर नहीं लिख कर दया पूर्ण न्यायदर्शक कल्याणकारी जैनशास्त्र माननेवाले जैनधर्मियोंमें तांत्रिक मतका असर लिखना क्या यह घोर पक्षपात नहीं है ? इससे ज्यादा और अन्यायी किसे कह सकते है. ऐसें अन्यायको देख कर उन लोगोंकी बुद्धि ठिकाने पर आवे, और मध्यस्थ वर्ग सत्यमार्गको स्वीकार करे इस भावनाके अलावा रंच मात्र भी किसी मतसे हमारा द्वेष नहीं है. अगर परमतवालों को थोड़ा भी स्वपर शास्त्रोंका ज्ञान होवे और स्वयं निष्यक्ष हो तो जैनमतके शास्त्रोंका बड़ा उपकार मानें जैसे तारीख - ३० नबेम्बर सन् १९०४ श्री जैन श्वेताम्बर कोन्फरंस के तिसरे अधिवेशन पर बडौदेमें 6 लोकमान्य पण्डित बालगंगाधर तिलक ने जेनधर्मको उपकारक माना है. देखिये ! माननीय पहाशयका यह उद्गार है-" जैनधर्म अनादि है "
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" ब्राह्मणधर्म पर जैनधर्मकी छाप
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श्रीमान् महाराज गायकवाडने पहले दिन कोन्फरेंस में जिस प्रकार कहाथा उसी प्रकार अहिंसा परमो धर्म, इस उदार सिद्धांतने ब्राह्मण धर्मपर चिरस्मरणीय छाप ( मोहर) मारी है. यज्ञ यागादिकोंमें पशुओंका वध होकर जो ' यज्ञार्थ पशुहिंसा ' आजकल नहीं होती है जैनधर्मने
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