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करो। भगवान महावीर की अहिंसा मनुष्यों तक ही सीमित नहीं थी । उसकी परिधि में स्थावर प्राणी- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति तथा कीट-पतंग आदि क्षुद्र स प्राणी भी समाहित थे । "अत्तसमे मन्नेज्ज छप्पि काए" - जीवों के जितने प्रकार हैं सबको आत्मा के समान मानो ।
- त्रस,
भगवान् महावीर ने कहा - "सव्वत्थ विरइं विज्जा, संति निव्वाणमाहियं " स्थावर सब जीवों की हिंसा से विरत होना अहिंसा है।
भयभीत प्राणी के लिए जैसे शरण स्थल, पक्षी के लिए जैसे गगन, प्यासे के लिए जैसे जल, भूखे के लिए जैसे भोजन, समुद्र में डूबते हुए के लिए जैसे पोतवाहन, रोगी के लिए जैसे औषधि, अटवी में भटकते हुए के लिए जैसे सार्थवाह का साथ-उसी तरह अहिंसा मनुष्य के लिए कल्याणकारी है ।
ब्रह्मचर्य के विषय में उन्होंने कहा- जो ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं वे मोक्ष पहुंचने में सबसे आगे रहते हैं- "इत्थिओ जेण सेवंति आदिमोक्खा हु ते जणा ।" ब्रह्मचर्य ध्रुव, नित्य और शाश्वत धर्म है - "एस धम्मे धुवे निअए सासए । "
उन्होंने धन-लिप्सा पर प्रहार करते हुए कहा था - प्रमत्त मनुष्य धन द्वारा न तो इस लोक में अपनी रक्षा कर सकता है और न परलोक में - "वित्त्रेण ताणं न लभे पमत्ते इमम्मि लोए अदुवा परत्था ।" "जब तक मनुष्य कामिनी, कांचन आदि सचित्त, अचित्त पदार्थों में परिग्रह-आसक्ति रखता है या उसका अनुमोदन करता है तब तक वह दुःख से मुक्त नहीं हो सकता ।"
इस तरह भगवान् महावीर की वाणी में उन शाश्वत सत्यों का मार्मिक प्रतिपादन है, जो किसी भी युग में मानव मात्र के लिए अत्यन्त कल्याणकारी है ।
भगवान महावीर की आस्था आन्तरिक शुद्धि पर थी, केवल बाह्य शुद्धि में उनको विश्वास नहीं था। उन्होंने कहा- जो मार्ग केवल बाह्य शुद्धि का है, उसे कुशल पुरुष सुदृष्ट नहीं कहते - "जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं न तं सुदिट्ठे कुसला वयंति।"
उन्होंने पशु-हिंसामय यज्ञादि का विरोध किया । जातिवाद के विरुद्ध उन्होंने कहा - "न कोई हीन है और न कोई अतिरिक्त (बड़ा)।" "जाति की विशेषता नहीं । विशेषता तप की है।" मनुष्य कर्म से ही ब्राह्मण होता है, कर्म से ही क्षत्रिय । कर्म से ही वैश्य होता है और शूद्र भी कर्म से ही ।" "जो दुराचारी है उसकी जाति व कुल शरणभूत-रक्षाभूत नहीं हो सकते। सुआचरित विद्या और आचरण-धर्म के सिवा अन्य कुछ भी रक्षा नहीं कर सकते । "
• भगवान् महावीर अपने युग के बहुत बड़े दार्शनिक चिन्तक रहे । उनकी निरूपण शैली सम्पूर्णतः वैज्ञानिक रही। उन्होंने अनेकान्त दृष्टि का प्रसार कर सहिष्णुता और व्यापक दृष्टिकोण का पाठ पढाया ।