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११. अवसोहिय कण्टगापहं ओइण्णो सि पहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिया समयं गोयम ! मा पमायए । । ( उ० १० : ३२) कण्टकाकीर्ण पथ को छोड़कर तू महापथ पर आया है। इस महामार्ग का ध्यान रखते हुए चल । हे गौतम! समय भर के लिए भी प्रमाद मत कर । १२. अबले जह भारवाहए मा मग्गे विसमे वगाहिया ।
पच्छा पच्छाणुतावए समयं गोयम ! मा पमायए । ।
महावीर वाणी
(उ० १० : ३३)
जैसे निर्बल भारवाहक विषम मार्ग में प्रवेश कर बाद में पछताता है, वैसा तेरे साथ न हो। हे गौतम! समय भर के लिए भी प्रमाद मत कर।
१३. तिणो हु सि अण्णवं महं किं पुण चिट्ठसि तीर अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम ! मा पमायए
मागओ ।
( उ० १० : ३४)
महान् समुद्र तो तू तैर चुका। अब किनारे आकर क्यों स्थिर है ? पार पहुँचने के लिए त्वरा कर । हे गौतम! समय-भर के लिए भी प्रमाद मत कर ।
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१५. बुद्धे परिनिव्वुडे चरे गामगए नगरे व संजए ।
सन्तिमग्गं च बूहए समयं गोयम ! मा पमायए ।।
१४. अकलेवरसेणिमुस्सिया सिद्धिं गोयम लोयं गच्छसि ।
खेमं च सिवं अणुत्तरं समयं गोयम ! मा पमायए ।। ( उ० १० :
३५)
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सिद्ध पुरुषों की श्रेणी के अनुसरण से तू क्षेम, कल्याणयुक्त और श्रेष्ठतम सिद्धिलोक को प्राप्त करेगा। हे गौतम! समय-भर के लिए भी प्रमाद मत कर ।
( उ० १० : ३६)
तू गाँव में या नगर में संयत, बुद्ध और उपशान्त होकर विचरण कर, शान्ति मार्ग को बढ़ा । हे गौतम! समय भर के लिए भी प्रमाद मत कर ।
२. असंस्कृतम्
१. असंखयं जीविय मा पमायए जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं वियाणाहि जणे पमत्ते कण्णू विहिंसा अजया गहिन्ति । ।
(उ० ४ : १)
जीवन (आयुष्य) साँधा नहीं जा सकता, अतः प्रमाद मत करो । निश्चय ही जरा-प्राप्त मनुष्य का कोई त्राण नहीं होता। प्रमादी, हिंसक और असंयत मनुष्य किसकी शरण में जायेंगे - यह सोचो।
१. क्षपक श्रेणी - कर्मों का विशिष्ट रूप से क्षय करने वाली विशुद्ध विचार-श्रेणी ।