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(: १ : अनुत्तर मंगल
१. नमोक्कारो नमो अरिहंताणं । नमो सिद्धाणं । नमो आयरियाणं । नमो उवज्झायाणं। नमो लोए सव्वसाहूणं ।।
(पंच० प्र० सू० १) अरिहंतों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार, लोक में सर्व साधुओं को नमस्कार।
२. चत्वारि मंगल १. चत्तारि मंगलं,-अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं,
साहू मंगलं, केवलिपन्नत्तो धम्मो मंगलं ।
(लोक में) चार मंगल रूप हैं-अर्हन्त भगवान् मंगल रूप हैं, सिद्ध भगवान् मंगल रूप हैं, साधु मंगल रूप हैं, केवलज्ञानी भगवान् द्वारा कहा गया धर्म मंगल रूप है। २. चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा,
साहू लोगुत्तमा, केवलिपन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो।
लोक में चार उत्तम हैं-अरिहंत भगवान् लोकोत्तम हैं, सिद्ध भगवान् लोकोत्तम हैं, साधु लोकोत्तम हैं और केवलज्ञानी भगवान् द्वारा कहा गया धर्म लोकोत्तम है। ३. चत्तारि सरणं पवज्जामि- अरिहंते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं पवज्जामि, साहू सरणं पवज्जामि, केवलिपन्नत्तं धम्म सरणं पवज्जामि।
(पंच० प्र० संथारा) मैं चार की शरण स्वीकार करता हूं,-अरिहंत भगवान् की शरण लेता हूं, सिद्ध भगवान् की शरण लेता हूँ, साधु की शरण लेता हूं, केवलज्ञानी भगवान् द्वारा कहे गये धर्म की शरण लेता हूं।
१. यहाँ आचार्य और उपाध्याय 'साधु' शब्द में गर्भित हैं।