Book Title: Mahavir Vani
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 18
________________ २१५ २२१ ३०६ २२६ २२६ ७. वन्दनीय १६७ ८. स भिक्षु : स पूज्य ૧૬૬ ६. अबहुश्रुत : बहुश्रुत २०२ १०. शिष्य : प्राज्ञ और अप्राज्ञ २०४ ११. प्रव्रज्या २०६ २६. स्वगत-चिंतन २०८-२११ १. आत्मा और चिन्तन २०८ २. मृत्यु-भय और चिन्ता २१० ३०. साधक-चर्या २१२-२१६ १. हित-मित आहार २१२ २. निद्रा-जय २१३ ३. समभाव ४. कष्ट और चिन्तन २१६ ३१. भावनायोग २२०-२४६ १. अनित्य भावना २. अशरण भावना २२३ ३. संसार भावना ४. एकत्व भावना ५. अन्यत्व भावना २३१ ६. अशुचि भवना ७. आस्रव भावना ८. संवर भावना ६. निर्जरा भावना २३६ १०. लोक भावना ११. दुर्लभबोधि भावना २४४ १२. धर्म भावना २४६ ३२. श्रामण्य और प्रव्रज्या २५०-२७६ १. दुष्कर श्रामण्य २५० २. प्रत्याख्यान और प्रवज्या २५६ ३. प्रवचन माताएँ २६० ४. भिक्षाचर्या और आहारविधि २६७ ५. परिपूर्ण श्रामण्य २७४ ३३. विनय-प्रतिपत्ति २७७-२८५ १. आचार्य-सुश्रूषा २७७ २. विनय-संहिता २७६ ३. गुरु-विनय और पूज्यता २८२ ४. आशातना और दुष्परिणाम २८४ ५. अन्यत्व भावना दुष्परिणाम २८४ ३४. उपसर्ग और समाधि २८६-३०० १. परीषह २८६ २. उपसर्ग और कायरता २६३ ३. स्नेह-पाश २६६ ४. चित्त-समाधि सूत्र ર૬ર ३५. मरण-समाधि ३०१-३१२ १. अकाम-मरण : सकाम-मरण ३०१ २. बाल-मरण : पण्डित-मरण ३०३ ३. शरीर-आसक्ति-त्याग ३०५ ४. आहार उपेक्षा ५. तीन पण्डित-मरण ३०८ ३६. श्रमण-शिक्षा : ३१३-३४७ १. अहिंसा और माधुकरी वृत्ति ३१३ २. अपरिग्रह और असंग्रह ३१६ ३. ब्रह्मचर्य-समाधि ३१८ ४. रात्रि-भोजन परित्याग ३२१ ५. कौन संसार भ्रमण नहीं करता? ३२२ ६. समत्व-साधना ३२३ ७. ण तस्स जाति व कुलं व ताणं ३२५ ८. उपदेश और चर्चा विधि ३२७ ६. मार्ग-स्थित भिक्षु ३३० १०. ऋजुधर्मा ३३३ ११. विमुक्त ३३५ १२. निर्मोह ३३७ १३. शैक्ष-बोध ३३८ १४. अनासक्ति ३३६ १५. बहु खु मुणिणो भई ३४० २३२ २३५ २३८ २४१

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