Book Title: Mahanishith Sutram
Author(s): Padmasenvijay, Kulchandravijay
Publisher: Jain Sangh Pindwada

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ २०० श्री महानिशीथ सूत्रम्-अध्य०६ गुरुदुक्खभरुक्कंतस्स अंसुनिवाएण जं जलं गलियं । तं अगडतलायनईसमुद्दमाईसु णवि होज्जा ।।३९९।। 'आवीयं थणछीरं सागरसलिलाओ बहुयरं होज्जा । संसारंमि अंणते 'अविलाजोणीए एक्काए ।।४००।। सत्ताहविवन्नसुकुहिय-साणजोणीए मज्झदेसंमि । किमियत्तण केवलएण जाणि मुक्काणि देहाणि ।।४०१।। तेसिं सत्तमपुढवीए सिद्धिखेत्तं च जाव उक्कुरुडं । चोद्दसरजूं लोगं अणंतभागेण वि भरेज्जा ॥४०२।। पत्ते य कामभोगे कालमणंतं इहं स उवभोगे । अप्पुव्वं चिय मन्नइ जीवो तहवि य विसयसोक्खं ॥४०३।। जह कच्छुल्लो कच्छु कंडुयमाणो दुहं मुणइ सोक्खं । मोहाउरा मणुस्सा तह कामदुहं सुहं बिंति ॥४०४।। जाणंति अणुभवंति य जम्मजरामरणसंभवे दुक्खे । न य विसएसु विरज्जंति गोयमा ! दुग्गइगमणपत्थिए जीवे ॥४०५।। सव्वगहाणं पभवो महागहो सव्वदोसपायट्टी । कामग्गहोदुरप्पाजेणऽभिभूयंजगंसव्वंतस्स वसंजे गयापाणी।४०६। जाणंति जहा भोगिड्ढिसंपया सव्वमेव धम्मफलं । तहवि दढमूढहियए पावं काऊण दोग्गई जंति ॥४०७॥ वच्चइ खणेण जीवो पित्तानिलसिंभधाउखोभेहिं । उज्जमह मा विसीयह तरतमजोगो इमो दुलहो ॥४०८।। ___ आपीतं स्तनक्षीरमिति । २. पशुयोन्यां मेषीयोन्यां वा तथा 'अबलाजोगीए' इत्यपि पाठान्तरमिति ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282