Book Title: Mahanishith Sutram
Author(s): Padmasenvijay, Kulchandravijay
Publisher: Jain Sangh Pindwada
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श्री महानिशीथ सूत्रम्
. २३१ अणंत-दुक्खपयायगाओ दोग्गइगमणाओ अत्ता संरक्खे, तम्हा छक्कायाइसंजममेव रक्खेयव्वं होइ ।२१।
से भयवं ! केवतिए असंजमट्ठाणे पन्नत्ते, गोयमा ! अणेगे असंजमट्ठाणे पन्नत्ते - जाव णं कायासंजमट्ठाणे । से भयवं ! कयरे णं से कायासंजमट्ठाणे ? गोयमा ! कायासंजमट्ठाणे अणेगहा पन्नत्ते, तंजहा -
'पुढविदगागणिवाऊवणप्फई तह तसाण विविहाणं । हत्थेणवि फरिसणयं वजेजा जावजीवंपि ।।६२।। सीउण्हखारखित्ते अग्गीलोणूस अंबिले णेहे । पुढवादीए परोप्पर खयंकरे 'बज्झसत्थेए ॥६३।। ण्हाणुम्मद्दणखोभणहत्थंगुलि-अक्खिसोयकरणेणं ।
आवीयंते अंणते आऊजीवे खयं जंति ॥६४।। संधुक्कणजलणुजालणेण उज्जोयकरणमादीहिं । वीयणफूमणउब्भावणेहिं सिहिजीवसंघायं ।।६५।। जाइ खयं अन्नेऽविय छज्जीवनिकायगइगए जीवे । जलणो सुटुइओवि हु संभक्खइ दसदिसाणं च ।।६६।। वीयणग-तालियंटय- चामरउक्खेव-हत्थत्तालेहिं । धावणडेवण-लंघणऊसासाईहिं वाऊणं ॥६७।। अंकूर-कुहर-किसलय-पवाल-पुष्फ-फलकंदलाईणं । हत्थफरिसेण बहवे जंति खयं वणप्फईजीवे ।।६८।। गमणागमणनिसीयण-सुयणुट्ठण- अणुवउत्तयपमत्तो । वियलेंदिय बितिचउपचेंदियाण गोयम ! खयं नियमा ।।६९।। पाणाइवायविरई सिवफलया गिण्हिऊण ता धीमं ।
मरणावयंमि पत्ते मरेज विरइं न खंडेजा ।।७०।। १. एतानि बाह्यशस्त्राणीति । २. आपीयमाना आप इति ।

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