Book Title: Mahanishith Sutram
Author(s): Padmasenvijay, Kulchandravijay
Publisher: Jain Sangh Pindwada

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Page 214
________________ श्री महानिशीथ सूत्रम् २०३ भमिहामि भट्ठसम्मत्तनाणचारित्तलद्धवरपोओ । कालं अणोरपारं अंतं दुक्खाणमलभंतो ।।११।। ता कइया सो दियहो जत्थाहं सत्तुमि-त्तसमपक्खो । नीसंगो विहरिस्सं सुहझाणनिरंतरो पुणोऽभवटुं ।।१२।। एवं चिरचिंतियऽभिमुहमणोरहोरुसंपत्तिहरिसमुल्लसिओ' । भत्तिभरनिब्भरो णयरोमंचकंचुयपुलइयंगो ॥१३॥ सीलंगसहस्सट्ठा- रसण्ह धरणे समोच्छयखंधो । छत्तीसायारुक्कंठनिट्ठवियासेसमिच्छत्तो ।।१४।। पडिवज्जे पव्वज्जं विमुक्कमयमाणमच्छरामरिसो । निम्ममनिरहंकारो विहिणेवं गोयमा ! विहरे ।।१५।। विहग इवापडिबद्धो उज्जुत्तो नाणदंसणचरिते । नीसंगो घोरपरिसहोवंसग्गाइं पजिणंतो ।।१६।। उग्गअभिग्गहपडिमाइ रागदोसेहिं दूरतरमुक्को । रोद्दट्टज्झाणविवजिओ य विगहासु अ असत्तो ।।१७।। जो चंदणेण बाहुं आलिंपइ वासिणा व जो तच्छे । संथुणइ जो अ निंदइ समभावो हुज दुण्डंपि ।।१८।। एवं अणिगूहियबलविरिअपुरिसक्कारपरक्कमो सममणतणमणिलिट्ठकंचणो चेव ।।१८।। परिचत्तकलत्तपुत्तसुहिसयणमित्तबंधवधणधन्नसुवन्नहिरण्णमणि-रयणसारभंडारो अच्चंत-परमवेरग्ग- वासणाजणियपवरसुहझवसायपरमधम्मसद्धापरो अकिलिट्ठनिक्कलुस- अदीणमाणसो य वयनियमनाणचारित्ततवाइसयलभुवणिक्कमंगल-अहिंसालक्खणखंताइदसविह-धम्माणुट्ठाणेक्तबद्धलक्खो,सव्वावस्सगतकालकरणसज्झायज्झाणमाउत्तो संखाईयअणेग-कसिणसंजमपएसु अविखलिओ संजयविरय-पडिहयपच्चक्खाय पावकम्मो अणियाणो मायामोसविवजिओ साहू वा साहुणी वा एवं गुणकलिओ जइ कहवि पमायदोसेणं असई १ 'हरिससमुल्लसिओ' पाठान्तरमिति । २. अवनत इति । ३. 'चेक्को' पाठान्तरमाश्रित्य रागद्वेषरहित एक इति ।

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